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________________ प्राचीन जैन इतिहास। २७ परशुरामके भयसे अपने साथ ले गया और बनमें सुसिद्धार्थ नामक जैन मुनिसे सब समाचार कहे व रानी चित्रमतीको बिठलाकर मुनिसे यह कहकर कि मैं अपने आश्रमको देखकर अभी आता हूं क्योंकि वह सूना है और आकर इसे ले जाऊँगा चला गया । कुछ समय बाद रानी चित्रमतीने गर्भ प्रसव किया और उससे चक्रवर्ति सुभौम उत्पन्न हुए। (४) जिस वनमें चक्रवर्ति उत्पन्न हुए थे वहांके वन देवताने इन्हें भरतक्षेत्रके भावी चक्रवर्ति समझ इनकी व माता चित्र. मतीकी उचित सेवा की । और उसकी संरक्षामें बालक सुभौम बढ़ने लगे। (५) एकवार चित्रमतीके पूछने पर मुनि सुसिद्धार्थने कहा था कि यह बालक सोलहवें वर्षमें चक्रवर्ति होगा। __ (६) कुछ समय बाद सांडिल्य अपनी बहिन और भानेनको अपने स्थान पर ले गया और पृथ्वीको स्पर्श करते हुए जन्म होनेके कारण बालकका नाम सुभौम रखा। (७) परशुरामने एकबार अपने शत्रुको जाननेकी परीक्षाके लिये सबका निमंत्रण किया उसमें सुभौम भी गये थे । भोजन करते समय परशुराम द्वारा मारे हुए रानाओंके दांत सबको दिखलाये । वे दांत सुभौमको दिखलाते ही सुगंधित चावल हो गये। बस शत्रु पकड़ लिया गया । अर्थात् सुभौम शत्रु माना गया । परशुगमने इसे बुलाया पर यह नहीं गया । तब दोनोंका युद्ध हुआ । जब सुभौम नीता नहीं जा सका तब परशुरामने अपना मदोन्मत्त हाथी सुभौम पर छोड़ा वह हाथी सुभौमके वश हुआ
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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