SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा भाग। तुम्हारा शत्रु होगा । इस पर परशुरामने सबका निमंत्रण किया । उसमें सुभौम भी आये । भोमनशालाके अधिकारीने क्रमशः दांत बतलाना शुरू किये । सुभौमके पास आते ही वे दांत सुगंधित चावल हो गये । बस सुभौम शत्रु समझा गया । उसे परशुरामने पकड़वाना चाहा पर निष्फल हुआ । फिर दोनोंका युद्ध हुवा । इसी युद्ध में सुभौमको चक्ररत्न और राजरत्नकी प्राप्ति हुई । चक्ररत्नसे सुभौमने परशुरामको मारा । ___ नोट:-हरिवंश पुराणकारने लिखा है कि परशुरामने ७ वार क्षत्रियों को मारा था। पाठ १३. चक्रवर्ति सुभौम । ( आठवें चक्रवर्ति) (१) आठवें चक्रवर्ति महाराजाधिराज सुभौम भगवान् अरहनाथके मोक्ष जानेके दो अरव बत्तीस वर्ष बाद उत्पन्न हुए थे। __ (२) चक्रवर्ति सुभौम इक्ष्वाकु वंशी अयोध्याके राजा सहस्रबाहुके पुत्र थे । जिस समय इनका जन्म हुआ था उस समयके पहिले ही इनके पिता व भ्राता परशुरामके हाथों मारे जा . चुके थे। . (३) जिस समय चक्रवर्ति गर्भ में थे उस समय चक्रवर्तिकी माता (गर्भवती) चित्रमतिको उसका तापसी बड़ा भाई सांडिल्य १-२ सहस्रबाहु और परशरामका वर्णन गत पाठमें दिया गया है।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy