________________
प्राचीन जैन इतिहास। १६९ रक्षकों को विद्याके बलसे निद्रामें मग्नार हनुमान बंदरके रूपमें सीतासे मिले । और रामके सब हाल तथा संदेश कहे । पहले तो सीताको संदेह हुआ पर फिर वह निसन्देह हो गई । और भोजन करना स्वीकार किया । हनुमान वहांसे रवाना होकर रामके पास आये, सब समाचार रामसे कहे । रामने आगे क्या करना उचित है, इसका विचार मंत्रियोंसे किया । रामने हनुमानको सेनापतिका पद दिया । और सुग्रीवको युवरान बनाया. मंत्रीने कहा कि पहिले राजनीतिके अनुसार शाम भेदसे ही काम लेना चाहिये और इसलिये हनुमानको दूत बनाकर रावणके पास भेजना उचित है । तब मनोवेग, विनय, कुमुद
और रविगति राजाके साथ हनुमानको दूत बनाकर भेना । और 'विभीषणको भी राम्ने संदेश भेजा । हनुमानने बिभीषणसे रामका संदेश कहा कि आप धर्मके माननेवाले विद्वान् , दूरदर्शी और रावणके हितैषी हैं । रावणने यह काम उचित नहीं किया है अतः आप उन्हें मझावें । हनुमानने यह संदेश कहकर स्वयं रावणसे मिलनेकी इच्छा प्रगट की । बिभीषण हनुमानको रावणके पास ले गया । हनुमानने मीठे वचनोंसे रावणको बहुत कुछ सीता वापिस करनेके लिये समझाया पर वह न माना । किन्तु हनुमान को राजसभासे निकल जानेकी आज्ञा दी। तब हनुमान लौट कर रामके पास आये । राम सब समाचार सुन युद्धको तयार हुए, और चित्रकूट वनमें पहुंचे । वर्षाऋतु वहीं व्यतीत की। वहां वालि विद्याधरने कहलवाया कि यदि आप मुझसे सहायता लेना चाहें तो हनुमान, सुग्रीवको निकाल दें मैं अभी सीताको