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प्राचीन जैन इतिहास। १५३ 'फिर रामचंद्र शवको लिये २ इधर उधर भटकने लगे । विभीषण
आदि राजा भी उनके साथ थे । उक्त दो देवोंने रामको समझानेका प्रयत्न किया। कभी सूखी बालू पैरते थे; कभी सूखे लक्कड़को न्हिलाते थे । जब रामचंद्र कहते कि यह क्या मूर्खता करते हो तब वे कहते कि आप भी तो मूर्खता कर रहे हो जो शवको लिये २ फिरते हो । पर गमके ध्यान में कुछ नहीं आता। एक बार उन देवोंने एक मृत शरीरको लाकर उसे निहलाया और तिलक वगैरह लगाया तब फिर रामने उनसे कहा । उनने कहा कि आप भी ऐपा ही कर रहे हैं । अब रामका भ्रम दूर हुआ
और उन्होंने सरयू नदी के तटपर लक्ष्मणके शवका दाह किया । उन देवोंने अपना स्वर्गीय रूप प्रगटकर रामचंद्रसे सब वृत्तांत कहा, जिसे सुनकर राम बहुत प्रसन्न हुए । लक्ष्मणका शब दाह करने के पश्चात रामको वैराग्य हो गया। उन्होंने अपने सबसे छोटे भाई शत्रुघ्नको राज्य संभालनेकी आज्ञा दी। परंतु उन्होंने भी वैराग्य धारण करने का विचार प्रगट किया । तब अपने नाती अनङ्गलवणके ज्येष्ठ पुत्रको राज्यका भार दिया। उनके पुत्र अनङ्ग लवणादिने दीक्षा धारण की । परंतु रामचन्द्र, पुत्रकी दीक्षाके कारण कुछ भी चिंतित नहीं हुए । रामके समान विभीघणने अपने पुत्र सुभूषणको, सुग्रीवने अङ्गदको अपना राज्य दिया इतने ही में अर्हदास सेठ रामके पास आये । रामने चारों संघके कुशल समाचार पूंछे तब उन्होंने कहा कि यहां भगवान् मुनिसुव्रतके कुलोत्पन्न सुव्रत नामक मुनि आये हैं, जो चार ज्ञानके धारी हैं। यह समाचार सुन सब उक्त मुनिकी वंदनाके लिये