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________________ प्राचीन जनै इतिहास । १४५ 1 1 बहुत अभिमान है; हम उनका अभिमान चूर्ग करेंगे । ऐसा कह दोनों कुमार युद्धार्थ उद्यत हुए। अपने साथ बहुत बड़ी सेना ली । ग्यारह हज़ार राजा इनके साथी बने और युद्धके लिये चले | (७) पर चक्रको चढ़ाई करते देख राम, लक्ष्मण भी उद्यत हुए और पांच हजार राजाओं सहित लड़ने लगे । दोनों ओर घोर युद्ध हुआ । सीताके भाई भामण्डल भी रामकी सहायतार्थ आये । परन्तु जब नारदने सम्पूर्ण वृत्तान्त कहा तब युद्धमें सम्मिलित न हो सीता के पास गये और उन्हें विमान में बिटलाकर युद्ध क्षेत्रमें लाये | और युद्ध देखने लगे। दोनों ओर से घनघोर युद्ध हुआ । कुमारोंका प्रहार इस रीति से होता था कि जिससे राम, लक्ष्मणके मर्म स्थानपर किसी प्रकारका आघात न होने पावे । क्योंकि दोनों कुमार अपने इस पूज्योंसे परिचित थे । परन्तु राम लक्ष्मण इन्हें नहीं जानते थे भाग नहीं लिया। क्योंकि उन्हें भी इन स्परिक सम्बन्ध ज्ञात हो गया था। दोनों कुमार बड़ी चतुरतासे युद्ध करते थे । रामके हल, मूसलोंने काम देना छोड़ दिया । लक्ष्मणका चक्र लौट आया तब इन्हें संदेह हुआ कि मालूम होता है कि बलभद्र, नारायण ये ही दोनों हैं, हम नहीं हैं । तब दोनों कुमारों के गुरु क्षुक प्रवर सिद्धार्थने आकर कहा कि आप संदेह मत करो : बलभद्र, नारायण तो आप हीं हैं । परन्तु ये श्रीमान् रामचन्द्र के पुत्र हैं । इसलिये आपके शस्त्र कुछ काम नहीं दे रहे | हनुमानने भी युद्ध में दोनों शत्रुओंका पार 1 1 हैं । जब यह गुप्त रहस्य राम, लक्ष्मणको मालूम हुआ तब उन्होंने शस्त्र पटक दिये और दोनों कुमारोंके पास आये । पिता
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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