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प्राचीन जैन इतिहास । १४३
तब सीताके
(४) परन्तु पृथु इस संदेश पर क्रोधित हो कहने लगा कि मैं अपनी कन्या अज्ञात कुल शीलवान पुरुषोंको नहीं देना चाहता । इस पर दोनों राज्योंमें युद्ध हुआ । राजा वज्रजघने पृथुके मुख्य सहायक व्याघ्ररथको बाँध लिया । तब पृथुने पोदनापुर नरेशको सहायतार्थ बुलाया । वज्रघने भी अपने पुत्रोंको बुलाया । कुमार युद्धार्थ जानेको प्रस्तुत हुए । सीताने यह कि अभी अवस्था बहुत छोटी है । परन्तु दोनों वीरोंने नहीं माना । माताको उत्तर दिया कि हम योद्धा हैं। छोटी चिनगारी बड़े २ बनोंको भस्म कर डालती है । जो वीर होते हैं वे ही पृथ्वीका उपभोग कर सकते हैं । अपने पुत्रोंके इस उत्तरसे प्रसन्न हो माता सीताने आशीर्वाद देकर विदा किया। दोनों कुमारोंके साथ पृथुका घनघोर युद्ध हुआ । जब पृथु भागने लगा तब कुमारोंने कहा कि भागते कहाँ हो ? हमारा कुल शील देखते जाओ । जब इनसे पीछा छुड़ाना उसे कठिन मालूम हुआ तत्र हाथ जोड़ कर इनके आगे खड़ा हो गया और अपनी कन्या कनकमालाका मदनांकुश कुमार के साथ विवाह किया ।
(५) फिर दोनों भाई दिग्विनयको निकले । सोसुह्य देश, मगध देश, अंग देश और वंग देशको जीतकर पोदनापुरके राजा के साथ लोकाक्ष नगर गये और उस ओरके बहुतसे राजा'ओंको जीता | कुबेरकान्त नामक महाभिमानी राजाको अपने आधीन किया । फिर लम्पाक देश, विजयस्थल, ऋषि कुन्तल देश, को जीतते हुए सालाय, नन्दि, नन्दन, स्थल, शलभ, अनल, भीम, भूतरव इत्यादि अनेक देशाधिपतियों को वश कर सिन्धु
दीनों बालक
कह कर रोका