SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा भाग। सीता सह कुटुम्ब तथा अन्यान्य राजागण सहित महेन्द्रोदय उद्यान में गये और वहां जल क्रीड़ा कर फिर राम, सीता आदिने बड़े समारोहके साथ पूजन व नृत्य किया । (२) राम, लक्ष्मण उसी उद्यानमें ठहरे हुए थे कि नगरके कुछ पुरुष आपके पास आये । उनमेंसे मुखियोंके नाम ये हैं:विजयसुरानी, मधुमानव, सुलोघर, काश्यप, पिङ्गल इत्यादि । नव ये रामके पास आये तब सीताकी दाई आंख फुरकी। सीता चिंता करने लगी। परन्तु अन्य रानियोंके कहनेसे कि भाग्य पर विश्वास रक्खो और दान--धर्म करो, सीता कुछ शांत हुई और अपने भद्रकलश भण्डारीको आज्ञा दी कि मेरे गर्भसे सन्तानोत्पत्ति होने तक किमिच्छिक दान दिया जाय । इधर नगरवासी निप्स प्रार्थनाके लिये आये थे उसे कहनेका उन्हें साहस नहीं होता था । तब रामके बहुत समझाने और प्राणदान देने का वचन देने पर उन्होंने कहा कि नाथ ! नगरमें स्वेच्छापूर्वक प्रवृत्तिकी वृद्धि होती जाती है । समाजका कुछ भय नहीं रहा है । निर्बलकी स्त्रीको सवल हर ले जाता है । दोनोंका संयोग होता है । निर्बल किसी अन्यकी सहायतासे अपनी स्त्रीको छुड़ा लाता है और फिर उसे घर ही में रखकर उसके साथ स्त्री व्यवहार रखता है । यदि अधिक कहते हैं तो उत्तर मिलता है कि महाराजा रामचंद्रने भी तो ऐसा ही किया है । यह धर्मके विरुद्ध मार्ग है। निवेदन है कि इसका आप उचित प्रबन्ध करें । यह सुन कर राम चिंतामें पड़े। वे सीताके सम्बंधमें नगर वासियोंके माव ताड़ गये । राम मन ही मन कमी तो सीताकी पवित्रता और प्रेमका विचार करते,
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy