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प्राचीन जैन इतिहास | १३७
श्रीधर, मदन, महाकल्याण, विमलप्रभ, अर्जुनप्रभ, श्रीकेशी, सत्य - केशी, सुपार्श्वकीर्ति, इत्यादि । सब पुत्र बड़े बलवान् और शस्त्रास्त्र विद्या- पटु थे।
(१७) राम, लक्ष्मणके आधीन नरेशोंकी संख्या सोलह हजार थी और रघुवंशी राजकुमारों की संख्या साढ़े चार करोड़ थी ।
पाठ ३२
सीताका त्याग, रामके पुत्र लवाङ्कुशका जन्म ।
(१) गर्भवती होने के पश्चात् सीताने एक रात में दो स्त्रम देखे । पहिले स्वप्न में दो अष्टापद देखे और दूसरे में अपने आपको पुष्पक विमान से गिरते देखा । अपने पति रामसे फल पूँछने पर उन्होंने कहा कि पहिले स्वप्न का फल तो यह है कि तुझारे गर्भसे युगल पुत्रों की उत्पत्ति होगी। दूसरा स्वप्न अनिष्टाकारक है, परन्तु दान पुण्य करने से सब अच्छा ही होगा | जब वसन्त ऋतु आई तब राम, लक्ष्मण, सीता आदि वनोंमें गये । गर्भ भारके कारण सीता दिन पर दिन कृश होती जा रही थी । वनमें एक दिन रामने सीतासे पूँछा कि क्या इच्छा है ? सीताने कहा कि मुझे स्थान २ के जिन मंदिरोंकी तथा बड़े समारोहसे जिन पूजन करने की इच्छा है। बस प्रत्येक स्थानके जिन मंदिर ध्वना, छत्र, तोरणादिसे सजाये गये । पूजन प्रभावनाका समारोह किया गया । तीर्थों पर भी आयोजन हुआ और महेन्द्रोदय नामक उद्यान में भी जिन मंदिर सुशोभित किया गया तब राम, लक्ष्मण,