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प्राचीन जैन इतिहास । १३५ शत्रुघ्नके कई पूर्वजन्मोंकी यह नगरी जन्मभूमि थी। मधुके स्वर्गगमन करने पर मधुके मित्र चमरेन्द्रने मथुरामें कई प्रकारके रोग फैलाये । उससे प्रजा जहां तहां भाग गई। शत्रुघ्न भी अयोध्या चले गये। कुछ दिनों बाद मथुरामें सप्तऋषियोंका शुभागमन हुआ जिससे मरी रोग नष्ट हो गया । इन ऋषियोंने मथुरामें ही चातुर्माप्त किया था। रहते मथुरामें थे। परन्तु भोजनके लिये अन्य नगरोंमें जाया करते थे । रोग शांत होने पर शत्रुघ्न मथुराको लौट आये । उनकी माता भी साथ थीं। दोनोंने ऋषियोंकी वंदना की और मथुरामें रहनेका सविनय आग्रह किया । परन्तु ऋषियोंने कहा कि यह धर्मकाल है । इस कालमें लोगोंका कल्याण करना हमारा कर्तव्य है। पंचमकाल शीघ्र प्रगट होनेवाला है। अतएव हम एक स्थान पर नहीं रह सकते। ऐसा कह मथुरासे विहार कर गये। जाते समय अयोध्यामें सीताके यहाँ आहार लिया।
(१३) विजयाईकी दक्षिण श्रेणीमें एक रत्नरथ नामक राजा था । उसके यहां एक दिन नारद गये । रत्नरथने अपनी कन्याके लिये वरके सम्बन्धमें पूछताछ की। नारदने कहा कि लक्ष्मणके साथ कन्याका विवाह कर दो । रत्नरथके पुत्रोंने कहा " लक्ष्मण हमारा शत्रु है। तू धूर्तता करता है । " ऐसा कह नारदको मारनेके लिये उद्यत हुए । परन्तु नारद शीघ्रतासे आकाश मार्गसे लक्ष्मणके पास आये । सब वृत्तान्त कहे तथा रत्नरथकी पुत्रीका चित्र बतलाया। उस चित्रपरसे मोहित हो लक्ष्मण