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दूसरा भाग
अनुचित है । राज्य और
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रामने कहा- मधु बलवान् है, उससे झगड़ा करना परन्तु शत्रुघ्नने नहीं माना तब रामने मथुराका आशीर्वाद दिया । लक्ष्मणने समुद्रावर्त धनुष दिया । (१२) राम, लक्ष्मणसे मथुराका राज्य तथा कुटुम्बियों से आशीर्वाद लेकर शत्रुघ्न मथुराकी ओर चले । साथमें बड़ी सेना थी । सेनाका सेनापति कृतान्तवक्र था । जब मथुरा के समीप पहुँच गये तब यमुना नदी के तटपर डेरे डाले | गुप्त- चरोंको नगर में भेजकर मधुकी स्थिति का पता मंगवाया। इधर शत्रुघ्न के मंत्री शत्रुघ्नकी' विजय के सम्बन्ध में चिन्ता करने लगे । क्योंकि मधुकी वीरता में बड़ी भारी ख्याति थी | परन्तु कृतान्तवक्रने सबको निसंशय कर दिया । गुप्त - चरोंने आकर सूचना दी कि मधु अपनी रानी जयंती के साथ क्रीड़ा करता हुआ उपवनमें पड़ा है। राज्य की ओर ध्यान नहीं देता । मंत्रियों की नहीं सुनता । यह समय अच्छा समझ शत्रुघ्न ने रातोंरात नगर पर अधिकार कर लिया और प्रजाको निर्भय रहने तथा रक्षा करनेका आश्वासन देकर सन्तुष्ट कर दिया । यह हालत देख मधु चढ़ आया | मधुके पुत्रको कृतान्तवक्रने मारा । तब मधु बड़े क्रोघसे युद्धको उद्यत हुआ । शत्रुघ्न और मधुसे घनघोर युद्ध हुआ । शत्रुघ्नके शस्त्रप्रहार से बड़े २ योद्धा मरने लगे । मधुका बख्तर छेद डाला । यह हालत देख मधुको वैराग्य हो गया और अपनी ओर से युद्ध बन्द: कर दिया | मधुको शांत देख शत्रुन्नने भी युद्ध बन्द कर दिया । और जब मधुने सन्यास धारण कर लिया तब शत्रुघ्नने प्रणाम कर मघुसे क्षमा मांगी। शत्रुको मथुरा पर घनिष्ठ प्रेम था । क्योंकि