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दूसरा भाग।
आये । पंदरह मास तक रत्न वर्षा की गई । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक उत्सव मनाया ।
(३) इक्ष्वाकु वंशी काश्यप गोत्रके अयोध्याके राजा अयोध्या सिंहसेन और रानी जयश्यामा देवीके आप पुत्र थे ।
(४) ज्येष्ठ वदी द्वादशीको आपका जन्म हुआ। आप तीन ज्ञान सहित उत्पन्न हुए थे। इन्द्रादि देवोंने जन्म कल्याणक उत्सव मनाया।
(५) आपकी आयु तीस लाख वर्षकी थी और पचास धनुष ऊँचा शरीर था । वर्ण सुवर्णके समान था।
(६) साड़े सात लाख वर्ष तक कुमार अवस्थामें रहकर पंदरह लाख वर्ष तक राज्य किया।
(७) आपके लिये वस्त्राभूषण स्वर्गसे आते थे। और साथमें क्रीड़ा करनेको स्वर्गसे देव भी आते थे ।
(८) एक दिन आकाशमें उल्कापात देखकर आपको वैराग्य उत्पन्न हुआ तब लौकांतिक देवोंने आकर स्तुति की। और भगवान् अनंतनाथने अपने पुत्र अनंतविनयको राज्य देकर ज्येष्ठ वदी बारसको सहेतुक नामक वनमें एक हजार राजाओं सहित दिक्षा धारण की । इस समय आपको मनःपर्यय ज्ञानकी उत्पत्ति हुई।
(९) दो दिन उपवास कर विनीता नगरीके राजा विशेषके यहां आहार लिया । इन्द्रादि देवोंने राजाके यहां पंचाश्चर्य किये।
(१०) दो वर्ष तक तप कर चैत्र वदी अमावसके दिन