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प्राचीन जैन इतिहास। १२३ फैलाई । तब भरतने द्रोणमुख राजा को बुलाया और उपाय पूछा । उसने अपनी पुत्री विशल्याके स्नान जलसे अयोध्याके रोग दूर किये और उसी जलसे महाराज भरतने मेरी शक्ति दूर की । सो आप विशल्याके स्नानका जल शीघ्र मंगावे । तब शीघ्रगामी विमानपर चढ़कर भामण्डल, हनुमान, अङ्गद अयोध्याको गये और भरतसे सब हाल कहा । अपने भाइयोंपर विपत्ति आई हुई देख भरत युद्धार्थ उद्यत हुए; पर हनुमान आदिके समझानेपर रुके । और अपनी माताके सहित द्रोणमुखके पास गये । और विशल्याको लङ्का भेजनेकी प्रार्थना की । हनुमान आदि विशल्याको लङ्का ले गये । ज्यों २ विशल्या, लक्ष्मणके समीप पहुँचती थी त्यों २ लक्ष्मणका स्वास्थ्य ठीक होता जाता था । जब वह समीप पहुंच गई तब वह शक्ति रूपिणी देवी लक्ष्मणके शरीरसे निकल कर भागने लगी। हनुमानने उसे पकड़ लिया। उसने कहा इसमें मेरा अपराध नहीं; हमें जो सिद्ध करता है उसीके शत्रुका मैं संहार करती हूं। रावणको असुरेद्रने मुझे दी थी सो उसकी आज्ञानुसार मैंने किया । तब तत्त्ववेत्ता हनुमान ने उसे छोड़ दिया विशल्याके जलसे शत्रुपक्षके योडाओंको भी रामने लाभ पहुंचाया। फिर लक्ष्मणका विशल्याके साथ विवाह हुआ । जब यह समाचार रावण व उसके मंत्रियोंने सुने तो रावणको कुछ भी चिन्ता नहीं हुई; पर मन्त्रीलोग चिंता करने लगे और संधिके लिये आग्रह करने लगे । रामके पास दूत भेजा गया। दूतके द्वारा कहलाया गया कि यदि रावणका सब राज्य और लङ्काके दो भाग लेकर सीताको और रावणके पकड़े हुए कुटुम्बियोंको राम देना स्वीकार