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दुसरा भाग। नन्दन, मूरि, कोलाहल, हेड, भावित, साधु, वत्सल, अर्द्धचन्द्र, जिन, प्रेमसागर, सागर, उरङ्ग, मनोज्ञ, जिनपति, नल, नील आदि।
(१०) अब राम, लक्ष्मणने स्वयं युद्ध करना प्रारम्भ किया। घनघोर युद्ध हुआ । राम, लक्ष्मणकी सेनाने कुम्भकरण, इन्द्रनीत मेघनादको बांध लिया । रावणने लक्ष्मणपर शक्तिका प्रहार किया। शक्ति लगनेसे अचेत होकर गिर गये । रामने रावणसे उस दिन युद्ध बन्द करनेको कहा । युद्ध बन्द हो गया । लक्ष्मणका उपचार होने लगा । राम बहुत शोकाकुल हुए। किसीको आशा नहीं रही। रावण, लक्ष्मणकी यह दशा देख बड़ा हर्षित हुआ। परन्तु अपने भाईयों व पुत्रोंको शत्रुके हाथमें गये जान दुखी भी हुआ। रुक्ष्मणके आसपास चारों ओर सात २ पहरे बिठलाये और लक्ष्मणको शक्ति दूर करनेके विचार किये जाने लगे। इतने में एक युवक आया। भामण्डलने उसे जानेसे रोक दिया । परन्तु जब उसने लक्ष्मणकी रक्षाका उपाय बतलानेका आश्वासन दिया तब भामण्डल उसे रामके पास ले गये । रामके दर्शनकर उसने कहा कि एक वार मुझे भी शक्ति लगी थी, तब अयोध्याके. स्वामी भरतने मुझपर द्रोणमेघ रानाकी पुत्री विशल्याके स्नानका जल सींचा था उससे मैं शक्ति रहित हुआ था । एकवार अयोध्यामें कई प्रकारकी बिमारियां देव द्वारा फैलाई गई थीं। क्योंकि एक व्यापारी अपने भैंसेपर भति मार लाद कर अयोध्याको आया था और वह भैसा अति भारके कारण घायल होकर मराथा मरकर वह बायुकुमार नातिका देव हुआ। उसने अपने पूर्व भवका स्मरणकर अयोध्या वासियोंसे कुपित हो अयोध्यामें बीमारियां