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________________ ११८ दुसरा भाग । ६ प्रतनाः - जिसमें दो सौ तिरतालीस रथ, इतने ही हाथी. बारह से पन्द्रह पियादे, और सातसौ उन्तीस घोड़े होते थे, उसे 'प्रतना' कहते थे । ७ चमूः - सातसौ उन्तीस रथ, सातसौ उन्तीस हाथी, छत्तीससौ पैंतालीस पियादे और इकवीस सौ सत्तासी घोड़ेवाली सेना 'चमू' कहलाती थी । ८ अनीकिनी : - इकवीस सौ सत्तासी रथ, इतने ही हाथी, दश हजार नौसौ पैंतीस पियादे, और छः हजार पाँचसौ इकसठ घोड़ेवाली सेना 'अनीकिनी' कहलाती थी । ९ अक्षौहिणीः- दश अनीकिनीकी एक अक्षौहिणी होती है। उसकी संख्या इस प्रकार है: - इक्वीस हजार आठसौ सत्तर रथ, इतने ही हाथी, एक लाख नौ हजार तीनसौ पचास पियादे, और पैंसठ हजार छः सौ दश घोड़े एक 'अक्षौहिणी' सेना में होते थे । (३३) इस प्रकार की दो हजार सेना रामकी ओर थी । इसमें एक हजार तो भामण्डल ही की थी, शेष भिन्न २ विद्याधरोंकी थी । किष्किन्धापुरसे चलकर बेलन्धापुरमें डेरे डाले । यहाँ नलसे बेलन्धापुरके राजा समुद्रसे युद्ध हुआ । समुद्र हारा; नल समुद्रको बाँधकर रामके समीप लाया । रामने समुद्रको छोड़ उसे राज्य दे दिया । इस दयासे प्रसन्न हो समुद्रने अपनी सत्यश्री, कमला, गुणमाली, रत्नचूड़ा नामक कन्याएं लक्ष्मणको दीं। यहाँ एक.. रात्रि रहकर सुवेल पर्वत पर गये । यहाँ केसवेल नगर के राजाको जीता। फिर आगे बढ़े और लङ्काके समीपवाले हंसद्वीपमें डेरे डाले ! .
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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