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_ दूसरा भाग। रामचन्द्रके साथ जानेको उद्यत हुए । जब ये दोनों भाई सीताके सहित चले, तब मातापिता, भाई इनके साथ २ जाने लगे। रामने मातापिताको बहुत कुछ समझा कर धैर्य बंधाया और लौटा दिया। नगरके लोग हाहाकार करने लगे। रामचन्द्र के जानेसे सर्व जन दुःखी हुए । सामन्त, मन्त्री आदि बड़ा पश्चाताप तरने लगे। सामन्तोंने भेटे दीं परन्तु रामने कुछ भी स्वीकार नहीं किया । राम लौटाने की चेष्टा करते पर कोई नहीं मानता । अन्तमें नगरके बाहर आकर अर्हनाथ स्वामीके मंदिरमें दर्शनार्थ गये और वहीं रात्रिभर ठहरना निश्चित किया । रात्रिको फिर माता यहां पर आई। अन्तमें सबकों सोते हुए छोड़ अर्द्धरात्रिके समय तीनों जनें उठकर चल दिये।
(३) परन्तु कुछ लोगोंकी उस समय भी निद्रा खुल गई और वे रामचंद्रके पीछे हो लिये । उन्हें रामचंद्रने बहुत समझाया। कुछ तो मान कर लौट आये, कई साथ ही में रहे । जब परियात्रा नामक वनमें पहुंचे तब फिर साथियोंको समझाया उस समय भी कुछ अपने २ स्थानोंको लौट गये और कई फिर भी साथमें रह गये । इस वनमें एक महाभयङ्कर अथाह नदी थी। उसके आसपास भीलादि जंगली मनुष्य रहा करते थे । जब इस नदीके तीरपर रामचंद्रादि पहुंचे तब उनके साथी नदीको देखकर बड़े चिन्तित हुए । और रामसे प्रार्थना करने लगे कि आप हमें पार लगाओ। परन्तु रामने लनकी एक भी नहीं सुनी । राम लक्ष्मण, सीता तीनों नदी पार करने लगे। पुण्यके प्रतापसे नदीका जल कमर २ रह गया । यह देख इस तटपर खड़े हुर