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________________ (८) के प्रयास से मुद्रित हुई और अब पन्यास प्रवरश्री भानुचंद्रविजय जी की अथक मेहनत, लगन, कर्तव्यदक्षत एवं दीर्घदृष्टि वृत्ति के कारण हिंदी भाषा में बन-सँवरकर जनता जनार्दना के समक्ष रखने का सुअवसर मुझे मिला है । रूपांतरकार आदरणीय श्री भानुचंद्रविजयजी का जन्म अहमदाबाद में सन् १९२१ में हुआ । लेकिन आपका उद्योग क्षेत्र प्राय: बम्बई रहा । वहाँ आपने विविध व्यवसाय किए। पिता श्री केशवलाल और माता जेठीबेन आपको जन्म देकर कृतार्थ हुए। विविध व्यवसायों में रत होने पर भी महाराजजी का मन हमेशा धार्मिकता की ओर ही लगा रहता था । फलस्वरूप सन् १९४९ में घर का परित्याग कर अहमदाबाद में आचार्य श्री विज्ञानसूरीश्वरजी के शुभ हाथों दीक्षा ग्रहण की । आचार्यदेव श्री कस्तुरसूरी महाराज के पास रहकर उन्होंने धार्मिक अध्ययन किया । वे उनके दादागुरु रहे और पन्यास चन्द्रोदय विजयजी महाराज गुरु ! भानुचन्द्रविजयजी ने सन् १९५४ से लेखन कार्य प्रारम्भ किया । उनकी पहली कृति नर्मदासुंदरी थी, जो गुजराती भाषा में है । इसके बाद 'अनन्तर अविरत रूप से साहित्य-सेवा करते रहे और उसी का फल है कि अब तक उनकी २१ कृतियाँ गुजराती, मराठी, हिन्दी और प्राकृत भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं | सन् १९६७ में उन्हें लोणावळा में गणिपद प्रदान किया गया। उसी वर्ष गाँव में उन्होंने पन्यासपद से भी विभूषित किया गया। इससे पूर्व सन् १९५७ में उन्हें पूना में ज्योतिष विशारद की उपाधि प्रदान की गई थी । उनका यात्रा क्षेत्र है महाराष्ट्र, गुजरात, सौराष्ट्र और कोकण | इन प्रदेशों में उन्होंने ८००० किलोमीटर से अधिक भ्रमण किया है । उनके शिष्य-परिवार में कुमारश्रमण स्थूलिभद्र और शालिभद्र जैसे शिष्योत्तमों का समावेश है । '
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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