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________________ (५६) जाती है और स्वयंवर भी कराया जाता है, सुंदर ? मैं मानता हूँ, कामदेव समान सुंदर उस राजपुत्र को देखते ही कनकमाला चित्रवेग के प्रति अनुराग छोड़ देगी और हमारा संकट भी दूर हो जाएगा । उनकी बात सुनकर चित्रकला ने मुझसे कनकमाला को मनाने के लिए आदेश दिया, अच्छा, कहकर मैं वहाँ से उठ गई, चंदना दासी से मैंने पूछा कि कनकमाला कहाँ है ? उसने कहा कि अभी ऊपर महल से उतरकर बगीचे की तरफ गई हैं किंतु उनका चेहरा अत्यंत मलिन था, उसकी बात सुनते ही मैं समझ गई कि छुपकर उसने पिता की बात सुन ली है । अतः वहाँ जाकर जब तक कुछ अनिष्ट नहीं कर पाती है तब तक मैं जाकर रोकूं । यह सोचकर मैं भी उसी रास्ते से उद्यान तरफ चली । वहाँ पहुँचकर उसको ढूँढने के लिए इधर-उधर घूम रही थी, इतने में कदली गृहमनोहर उसी उद्यान के एक भाग में घने पत्तोंवाले तमाल गृह के नीचे बैठी हुई उसको देखा । तब मैंने सोचा कि घर छोड़कर अकेली यह बगीचे में क्यों चली आई है ? पिता की बात सुनने के बाद यह क्या करती है ? यह जानने के लिए चुपचाप केले के स्तम्भ की ओट में छिपकर मैं देखने लगी, कुमार ! उसके बाद जो हुआ सो आप सुनिए । लम्बी साँस लेकर अब संकल्प विकल्प से क्या । विधाता की अभागिन का उस प्रियतम के साथ जब संगम नहीं हुआ, इतना ही नहीं, दर्शन की भी आशा नहीं रही तो हृदय ! तू फूट क्यों नहीं जाता ? पिताजी के वचन सुनने के बाद भी जो तू फूट नहीं गया, इससे मैं मानती हूँ, तू वज्र से भी अधिक कठोर है, मेरे हृदय में जो अभिमान था कि माता-पिता का मेरे ऊपर बहुत स्नेह है, आज वह अभिमान भी नष्ट हो गया क्यों कि यह कार्य सुखसाध्य वह बोलती है कि प्रतिकूलता से मुझ
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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