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________________ (५५) दूसरा विकल्प छोड़कर कनकमाला से कहो कि वह चित्रवेग का मोह छोड़ दे ! दूसरी बात यह है कि वह राजकुमार कुलीन प्रियंवद, शूर, धीर, त्यागी, पिता की लक्ष्मी से अलंकृत, रूप यौवन, कला, विद्या आदि से अत्यंत गुणवान है अतः उसके साथ ही कनकमाला का विवाह अच्छा होगा। उनकी बात सुनकर चित्रमाला ने मुझ से कहा कि सोमलते ? अब इसका क्या उपाय करना चाहिए ? मैंने कहा उपाय तो आप ही जानती होगी क्यों कि उसका स्वरूप आपने देख लिया है, फिर उसने मुझ से कहा कि तुम जाकर उसका भाव लो, वह दूसरे पुरुष को चाहती है नहीं ? इतना ही नहीं उसके सामने उसराज कुमार की प्रशंसा और चित्रवेग की कुछ निंदा कर के भी उसे मनाओ । इस पर मैंने कहा, स्वामिनि ? क्या आप अपनी पुत्री का स्वभाव नहीं जानती हैं ? जिससे मुझे यह आदेश दे रही हैं, मैं तो मानती हूँ कि दूसरे के साथ विवाह करने की बात तो दूर रहे, इस समाचार को सुनते ही वह मर जाएगी, मेरी बात सुनकर अत्यंत दुःख से रोती हुई चित्रलेखा ने कहा कि भद्रे ! मेरे मन में भी यही बात आती है, हाय ! दुष्ट विधाता ने यह क्या कर दिया ? इसके बाद बड़े शोक से रोती हुई प्रिया को देखकर अमितगति ने कहा, सुंदरि ! रोने से क्या होगा? मुझे भी क्या दु.ख नहीं होता ? कितना सोचने पर भी मैं दूसरा उपाय नहीं देख रहा हूँ, अतः परिणाम का चिंतन करो, राजपुत्र को लड़की नहीं देने में गुणदोष का विचार करो, दूसरी बात यह भी है कि कनकमाला को माता-पिता के प्रति बड़ा बहुमान है, गुणदोष का विचार कर वह हमारे वचन के प्रतिकूल नहीं चलेगी। इतना ही नहीं, माता-पिता के विचार से ही लड़की की शादी की
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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