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________________ (५३) इस प्रकार केवली की देशना सुनकर हाथ जोड़कर गंधवाहन राजा ने कहा, भगवंत ? आपका वचन सर्वथा सत्य है, मैं अपने पुत्र नभोवाहन को विद्यासहित राज्य देकर गृहवास का त्याग करता हूँ । इसके वाद अवसर पाकर प्रणाम कर के मैंने haagra पूछा कि भगवन् ? विज्ञान रूप सम्पन्न प्राणों से भी अधिक प्यारी कनकमाला नाम की मुझे एक ही पुत्री है, उसका हृदयवल्लभ स्वामी कौन होगा ? मेरे मन की शांति के लिए मुझे बतलाएँ कि कौन विद्याधर उसका पाणिग्रहण करेगा ? ऐसा पूछने पर केवली ने कहा, भद्र ! इस साधारण बात के लिए चिंता क्यों करते हो ? तुम्हारी पुत्री का भर्ता वह होंगा जो इस वैताढ्य पर्वत पर विद्याधरचक्रवर्तित्व का पालन करेगा । तुम्हारी पुत्री उसकी सकल अंतःपुर में प्रधान प्राणप्रिया महादेवी ( पटरानी ) होगी । केवली के वचन को सुनकर मुझे बड़ा आनंद हुआ, इतने में मुनि की वंदना कर के राजा उठे, उसके बाद राजा के साथ उसी नगर में आया । राजा ने बड़े प्रेम से कहा कि लोकमर्यादा के अनुसार अत्यंत प्रिय होने पर भी लड़की तो किसी को देनी ही होगी, इसलिए आप अपनी पुत्री मेरे पुत्र नभोवाहन को दीजिए जिससे कि विवाह विधि सम्पन्न कर के नभोवाहन को अपने पद पर रखकर मैं पिताजी के चरणों की सेवा में लग जाऊँ, उसके बाद मैंने कहा कि पुत्री की तो बात ही क्या मेरे प्राण भी आपके अधीन है । वह लड़की भी कितनी भाग्यशालिनी होगी जो आपकी पुत्रवधू होगी । केवली के वचन से भी ऐसा ही लगता है क्यों कि आपके पुत्र को छोड़कर दूसरा इस वैताढ्य पर विद्याधर चक्रवर्ती होगा ही कौन ? मेरी बात सुनकर राजा का मुखकमल प्रसन्न हो गया और उसने सोमयश ज्योतिषी को बुलाकर
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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