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________________ (५१) बात भी नहीं करती ? यह कार्य कठिन नहीं है, तू विषाद छोड़, चित्रभानु तो हमारे अधीन के हैं, तू कुमारी है, चित्रवेग रूप से कला से सर्वथा योग्य है, उसके ऊपर यदि तेरा अनुराग हुआ तो यह अनुकूल ही है अब तुझे चिंता करने की कुछ ज़रूरत नहीं, किंतु तेरे पिताजी गंधवाहन विद्याधर राज के पास गंगावर्त गए हैं। वे वहाँ से आते हैं तब बड़े समारोह के साथ तेरा विवाह कराऊँगी । चैत्र महीना बीत रहा है, शीघ्र ही विवाह - लग्न आएगा, तू उद्वेग छोड़, इस प्रकार माता के आश्वासन से वह कुछ स्वस्थ हुई और उसकी माता वहाँ से उठी । इतने में उसके पिता अमितगति गंगावर्त से आए, परिजन ने विनय किया। स्नान, भोजन के बाद वे जब ऊपर महल में बैठे तब चित्रमाला के साथ मैं भी वहाँ गई, कुशल - प्रवृत्ति पूछने के बाद चित्रलेखा ने कनकमाला की सारी बातें उनसे बतलाईं, सुनते ही उनका मुंह एकदम काला हो गया, उन्होंने कहा, मेरे ऊपर बड़ा संकट आ गया । चित्रमाला ने पूछा प्रियतम ! संकट का कारण क्या हे ? अमितगति ने कहा, प्रियत मे ? राजकार्य से मैं यहाँ से गंगावर्त पहुँचकर सभा में श्री गंध वाहन विद्याधर राज के पास बैठा और विनयपूर्वक राज कार्य बतलाया । इतने में एक विद्याधरकुमार ने सभा में प्रवेश किया और प्रणाम कर के कहने लगा, देव ? विद्याधरचक्रवर्ती आपके पिता सुवाहन जिन्हें सर्व विद्याएँ सिद्ध थीं, जो सुरासुरमनुज लोक में विख्यात थे, विद्याधर राजलक्ष्मी का अनुभव कर के अपने पद पर आपको स्थापित कर के सांसारिक विभूति की असारता जानकर जिन्होंने चित्रांगदमुनिवर के पास श्री ऋषभदेव जिनेश्वर प्ररूपित सर्वविरतिरूप चारित्र्य ग्रहण किया, गुरु के पास अभ्यास कर के जो सर्वशास्त्रज्ञाता बनें ।
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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