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________________ (३३) प्रकाशित करनेवाली अनेक गुणोंवाली एक श्रेष्ठ मणि धनदेव को उपहार रूप में दी । अनेक लक्षणोंवाली उस दिव्यमणि को देखकर विकसित नेत्रोंवाला धनदेव इस प्रकार कहने लगा कि ऐसी श्रेष्ठ मणि मनुष्य लोक में संभवित नहीं, यह तो केवल देवलोक में उत्पन्न हो सकती है । ऐसा निश्चय होने पर भी मेरे चित्र में कौतुक है ही, अतः आप कृपा कर बताइए कि यह मणि आपको कहाँ से प्राप्त हुई, तब सुप्रतिष्ठ ने कहा कि आपका निश्चय बिलकुल ठीक है, क्यों कि यह मणि मनुष्य क्षेत्र में संभवित नहीं है, यह मणि देवलोक में उत्पन्न है, इसकी प्राप्ति का निदान बतलाकर मैं आपके कौतुक को दूर करता हूँ, आप एकाग्रचित्त होकर सुनें, किसी समय प्रातःकाल होते ही हाथ में धनुषबाण लेकर साथियों के साथ शिकार के लिए चला, यहाँ से दो कोस उत्तर घने पत्तोंवाले वृक्षों से व्याप्त एक वन में जब पहुँचा तो एकाएक आकाश में ज़ोर-ज़ोर शब्दों से रोती हुई एक स्त्री को सुना, वह इस प्रकार बोलती थी कि हे प्रियतम ! मेरे कारण आप कितने बड़े संकट में पड़ गए हैं, आर्यपुत्र ? मैं आपके विरह में जीवित नहीं रह सकती हूँ। उसके बाद किसी पुरुष के अत्यंत कठोर शब्द सुनें, जो कह रहा था कि मेरे वश में आ जाने पर अब तुमको कौन सहारा दे सकता है । उसको सुनकर मेरे मन में अत्यंत कुतूहल उत्पन्न हुआ, दो-तीन कदम आगे जाने पर एक वननिकुंज में नहीं दिखते हुए किसी मनुष्य का दुःखसूचक मंद-मंद रोने का शब्द मुझे सुनाई पड़ा। उसके बाद और अधिक कौतुक से मैं उसी तरफ चला और एक विशाल ऊँचे सीधे शेमल के वृक्ष को देखा। केवल देखने से -३ -
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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