SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२९) कुछ कह नहीं सकती है, अतः इसके योग्य वर का अन्वेषण मुझे ही करना पड़ेगा, एक क्षण के बाद कुछ सोचकर राजा ने कहा, पुत्रि ! मैंने तेरे अनुरूप वर को ढूंढ लिया है, सिद्धार्थपुर का राजा सुग्रीव, जो कि मेरा घनिष्ठ मित्र है, उसको ही वरण करो, देव ? पिता के द्वारा आपका नाम सुनते ही राजकुमारी हर्ष से रोमांचित हो उठी, राजकुमारी के भाव को जानकर राजा ने मेरी ओर देखकर कहा कि महाबल ? तुम शुभ तिथिकरण नक्षत्र में कुछ सैनिकों के साथ पर्याप्त धनराशि लेकर कनकवती को स्वयंवर के लिए साथ कर के सिद्धार्थपुर जाओ। राजा की आज्ञा के अनुसार कनकवती को लेकर मैं वहाँ से चला और यहाँ से एक योजन को प्राप्त हुआ। रात बीतने पर कुछ तेज चलनेवाले घोड़े से आगे आकर आपसे यह प्रिय निवेदन करने के लिए यहाँ आया हूँ । देव ! मेरे आने का यही कारण है अब आपकी जैसी आज्ञा । राजा ने हर्षित होकर अपने परिजन से कहा कि खूब धूमधाम के साथ कन्या का नगर में प्रवेश कराओ। परिजनों द्वारा कन्या को नगर में लाए जाने पर शुभ मुहूर्त में राजा ने उसके साथ विवाह किया धीरे-धीरे वह कनकवती राजा की अत्यंत वल्लभा बन गई, मेरी माता के स्थान में अब कनकवती पटरानी बन गई, मनुष्य का प्रेम ऐसा है कि वह देशकाल की दूरी से अत्यंत प्रेमपात्र को भी भूल जाता है, लता के समान समीपवर्ती के ऊपर चढ़ जाता है, कनकवती के ऊपर राजा का राग इतना बढ़ा कि अंतःपुर की अन्य रमणियो से उनका चित्त इतना हट गया कि उनके पास जाना-आना भी बंद हो गया ! इसके बाद कनकक्ती को एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जिसका नाम 'सुरथ' रक्खा गया । धीरे-धीरे वह कुमारावस्था को प्राप्त हुआ । कनकवती ने एक दिन एकांत
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy