SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८) आठ वर्ष का जानकर अत्यंत पुत्र स्नेह से उपाध्याय के पास मुझे कलाओं का ज्ञान कराने लगे, कला कुशल जानकर राजा ने मुझे हज़ार गाँव दिए और मुझे देख-देखकर रानी के शोक को भलने लगे। एक समय राजा सभामण्डप में विराजमान थे कि इतने में सुभग नाम का द्वारपाल प्रणाम कर उनसे इस प्रकार कहने लगा । देव ? चम्पापुरी से कीर्तिधर्म राजा का सामंत आपके दर्शन की इच्छा से द्वार पर खड़ा है, राजा की आज्ञा से वह सामंत सभा में आया और प्रणाम कर के उचित आसन पर बैठ गया । ताम्बूल आदि से सत्कार करते हुए राजा ने आने का कारण पूछा, तब वह कहने लगा कि आपको यह विदित है कि श्री कीर्तिधर्म चम्पापुरी के राजा है जिनकी निर्मल कीर्ति दशों दिशाओं में फैली है, देवांगनाओं के रूपातिशय को जीतनेवाली समस्त स्त्री समाज में सन्मानित लोकविख्यात कीर्तिमती उनकी पटरानी है, उस रानी की सौभाग्य विज्ञान आदि से पूर्ण पातालकन्या के समान सुंदर कनकवती नाम की पुत्री है, यौवन प्राप्त होने पर राजकुमारी कनकवती को भूषणों से अलंकृत कर के माता ने उसके पिता के पास भेज दिया ताकि उसके स्वरूप को देखकर उसके योग्य वर का अन्वेषण करें, राजकुमारी ने जाकर पिताजी को प्रणाम किया, उसे गोद में विठाकर आलिंगन करते हुए राजा ने कहा, पुत्रि ? इन सामंत-महंत राजकुमारों में जो तुझे इष्ट लगे उसका नाम बता, जिससे कि मैं उसके साथ तेरा विवाह कर दूं, पिता की बात सुनकर राजकुमारी ने लज्जा से अपना मुख नीचा कर लिया, बार-बार पूछने पर भी जब राजकुमारी ने उत्तर नहीं दिया तब पिता को मालूम पड़ा कि यह बिचारी लज्जा के कारण
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy