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________________ (२२४) वहाँ कोल्हू में वहते-वहते क्षीण होकर मर गया और हिमालय पर सर्प होकर उत्पन्न हआ। आप रानी के साथ जब प्रश्नोत्तर में लीन थे, उसी समय उसने काट लिया, बाद में आपके अंगरक्षकों ने उसे मार डाला, वही मदनवेग होकर उत्पन्न हुआ। पूर्ववैर से शोचागार में अदृश्य होकर उसीने आपको मारने का प्रयत्न किया था, कुंतधारी अंगरक्षकों के भय से विष्ठाकूप में गिर पड़ा, और विष्ठा खाकर बहुत दिन तक रहा । विष्ठा दूर करनेवालों ने जब द्वार खोला तब आपके भय से वह निकलकर भाग गया। अशुद्ध आहार ग्रहण करने से उसे कुष्ठ हो गया और अभी वह दुःखी होकर घूमता-फिरता है, सूरि के वचन सुनकर, विरक्त होकर राजा ने सुरसुन्दरी के दूसरे पुत्र को राज्य देकर, जिन-बिम्बों की पूजा करके, अनेक दान देकर वस्त्रादि से श्रमण-संघ का सन्मान करके शुभलग्न में अनेक विद्याधरों के साथ चित्रवेग सूरि के पास दीक्षा ले ली, सुरसुन्दरी ने भी वैर निमित्त दुःख को सुनकर गणिनी कनकमाला के पास दीक्षा ले ली। इस प्रकार पूर्वोक्त तीन बहनें और तीन भाई सब के सब व्रती बन गए। चित्रगतिवाचक के पास सूत्रों को पढ़कर चित्रवेग आचार्य के पास अर्थ सुनते हुए क्रमश: मकरकेतु सूत्रार्थ विशारद बन गए। मकरकेतु मुनि पंचविध तुलना तथा तपभावना से आत्मभावन करके श्मशान में प्रतिमा धारण करने लगे। इतने में सूरि विहार करके चम्मापुरी गए । और मकरकेतु मुनि प्रतिदिन श्मशान में प्रतिमा धारण करने लगे। चित्रगतिवाचक को वाचना समय में प्रमाद से विकथा करते समय साधुओं के बीच से कोई देव हरकर ले गया। मुनियों ने जाकर सूरि से कहा, सूरि ने उपयोग में आकर सभी बातों को जानकर साधुओं
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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