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कि जब तक यह पापगर्भ का प्रसव नहीं होता है, तब तक मुझ पापन का मुख भी नहीं देखें, प्रियंवदा ने जाकर राजा से सारी बातें कह दीं । राजा सुनते ही आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने कहा कि अरे ? जो देवी एक क्षण के लिए भी मेरे विरह को सहन नहीं कर सकती थी, वही देवी गर्भ के प्रभाव से मुझे देखना नहीं चाहती है, निश्चय पूर्वविरोधी सुबंधु जीव भवितव्यतावश रानी के गर्भ में आ गया है, राजा इस प्रकार चिंतन कर प्रिया - विरह से दुःखी होकर समय व्यतीत करने लगे । इतने में अशुभ ध्यानवाली रानी को देखकर राजा के मित्र की तरह रानी के स्तन - श्याममुख हो गए । राजा के विरह में अत्यंत उत्कण्ठित की तरह रानी का कपोलस्थल अत्यंत सफेद हो गया । सब ने गुरुता प्राप्त की, अब मेरा अवसर है, यह सोचकर रानी का उदर बढ़ गया । उदर की गुरुता देखकर कहीं मैं पराजित न हो जाऊँ, यह सोचकर नितम्ब और अधिक बढ़ गया । क्रमशः समय पूर्ण होने पर चंद्रमा जब मूल नक्षत्र में था, पापग्रह से दृष्टलग्न में भद्रा तिथि में सुरसुंदरी ने अत्यंत कष्ट से बालक को जन्म दिया। राजा ने प्रसन्न होकर ज्योतिषी को बुलवाया। और पूछा कि इस समय में उत्पन्न पुत्र का गुणदोष बतलाइए । सिर हिलाते हुए उसने कहा, नरनाथ ? ऐसे समय में उत्पन्न बालक पिता के लिए हानिकारक है, पिता के घर में बढ़ने पर कुल और राजलक्ष्मी का नाश करेगा । देव ! आप क्रोध नहीं करेंगे, आपने जब तक उसको नहीं देखा है तब तक ही कुशल हैं, जब आप देखेंगे तब आपके प्राणों का भी संशय रहेंगा। यह कहकर ज्योंतिषी के वहाँ से चले जाने पर संतप्त होकर राजा ने प्रियंवदा को बुलवाया और कहा कि प्रथमपुत्र जन्मदिन में सबको हर्ष होता है,