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दुःख का अनुभव किया, जिसका स्मरण करने से अभी भी डर लगता है।
कमलावती की बात सुनकर राजा की आँखें आँसू से भर आईं, अत्यंत दुःखी होकर उन्होंने कमलावती से कहा, देवि ? जीव कर्मवश अनेक दुःखों को भोगते हैं, अपने किए हुए कर्मों के फल को जीव अकेला भोगता है, माता-पिता भाई, बंधु - कोई साथ नहीं देता, आपको भी राग द्वेषाधीन किए गए पूर्व कर्मों का फल भोगना पड़ा है, फिर भी मैं अपना पुण्योदय मानता हूँ, जिससे आपको कूप में गिर जाने पर भी जीवित पाया । इस प्रकार अनेक वचनों से रानी को आश्वासन देकर अपनी सेना के साथ राजा अपने नगर हस्तिनापुर आए । नगर के लोगों के द्वारा अनेक मांगलिक उपचार से आनंदित राजा ने रानी के साथ अपने भवन में प्रवेश किया । इसके बाद रानी के साथ अनेक सुखों का अनुभव करते हुए राजा के लाखों वर्ष बीत गए ?
एक समय राजा जब सभा में विराजमान थे, प्रतिहार की आज्ञा लेकर समंतभद्र नामक उद्यान पाल ने सभा में प्रवेश करके राजा को प्रणाम करके कहा कि राजन ? सुमति नैमित्तिक के वचन से कुसुमाकर उद्यान पालक रूप में आपके द्वारा मैं नियुक्त किया गया, किंतु आज तक नैमित्तिक के वचनानुसार किसी को देखा नहीं था, किंतु आज जब मैं विकसित वृक्षों को उद्यान में देख रहा था, एकाएक उद्यान के मध्य भाग में पक्षियों को उड़ानेवाला एक विचित्र शब्द सुना, आश्चर्य से चकित होकर मैं जब उधर ही को चला, तो बकुलवृक्ष के नीचे भूमि पर पड़ी हुई रूपातिशय से देवांगनाओं को लज्जित करनेवाली मनोहर अंगों