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________________ ( १४० ) आदमी ने रज्जुप्रयोग से अंदर जाकर इधर-उधर देखने पर तटभाग में एक युवती को देखा और पूछा कि सुंदरि ! इस अंधकार में भय से काँपती हुई तुम कौन हो ? जब तक उसने कुछ उत्तर नहीं दिया तब तक चामरधारिणी जीनी मिल गई, उसको लेकर बाहर आकर उसने कहा, राजन ! इसमें एक और दूसरी युवती भी है, पूछने पर कुछ बोलती नहीं है, भय से उसका शरीर काँपता है, इतने में राजा की दाईं आँख फड़कने लगी । राजा ने सोचा कि क्या देवी होंगी ? अथवा इस जंगल में देवी का संभव कहाँ ? अथवा कर्मवश जीवों का कहीं भी जाना असंभवित नहीं, यदि देवी होंगी तो अच्छा, नहीं तो दूसरी स्त्री hi निकालना भी अपना धर्म है । यह सोचकर राजा ने फिर उसीको आदेश दिया । रज्जुप्रयोग से अंदर जाकर उसने कहा, सुंदरि ! अमरकेतु राजा के आदेश से आपको इस नरकाकार कूप से निकालने के लिए आया हूँ । उसके इस वचन को सुनकर मंचिका पर चढ़कर रानी बाहर निकल गई । वह इतनी दुबली हो गई थी कि राजा ने उसे पहचाना नहीं, राजा को देखकर वह घर्घर शब्द से रोने लगी। आँसू बहाते हुए राजा उसको लेकर अपने आवासस्थान पर आए। वहाँ उसकी उस स्थिति को देखकर सब परिजन रोने लगे । इसके बाद कुछ स्वस्थ होने पर राजा ने पूछा कि हाथी आपको कहाँ ले गया ? इस कूप में कब और कैसे पड़ी ? इस भीषण जंगल में आई कैसे ? कमलावती ने कहा, राजन ! सुनिए, मैं कहती हूँ आपने जब उस वटवृक्ष को पकड़ लिया और उसे पकड़ न सकी, उसके बाद वह हाथी आकाश में उड़ गया, तब मैंने सोचा कि हाथी में प्रविष्ट होकर कोई देव मुझे ले जा रहा है क्योंकि
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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