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________________ (१३८) धारण कर रहे थे, इतने में समरप्रिय आदि वीरों सहित सेना अत्यंत दीन तथा मलिन मुख किए वहाँ पहुँच गई, राजा ने समरप्रिय से पूछा, भद्र ? क्या वह दुष्ट हाथी मिला, क्या देवी को उससे छुड़ाया ? लम्बी साँस लेकर समर प्रिय ने कहा, राजन ! हाथी की दिशा में चलकर जंगल में पहुँचकर बहुत अन्वेषण करने पर भी न हाथी का और न देवी का ही पता लगा, भीलों को पूछते हुए बहुत दूर जाने पर दूसरे दिन एक जीर्णवस्त्रधारी यात्री ने कहा कि सात दिन पहले पद्मोदर नामक सरोवर में आकाश से गिरते हुए महिला सहित एक हाथी को देखा था, फिर भयभीत होकर अत्यंत घने जंगल में प्रवेश करके सरोवर के किनारे विचरतें हुए नारीरहित हाथी को देखा, उसकी यह बात सुनकर मैंने कहा, भद्र ? आप शीघ्र उस सरोवर को दिखलाइए, उसने उस सरोवर को दिखलाया किंतु अन्वेषण करने पर भी देवी को नहीं पाया । सरोवर से एक योजन दूर पर हाथी मिला, उसको लेकर दुःखी होते हुए हम लोग यहाँ आए हैं, देवी क्या तो उसी सरोवर में डूब गई अथवा तो सरोवर से निकलकर किसी बस्ती में गई, अथवा जंगल में किसी दुष्ट जानवर ने उन्हें मार डाला ? राजन ? देवी का समाचार हम कुछ नहीं जानते हैं ? इस प्रकार जब समरप्रिय राजा से कह रहा था, इतने में द्वारपाल ने आकर विनयपूर्वक कहा कि राजन् ! द्वार पर सुमति नैमित्तिक खड़े हैं, सुनते ही राजा ने कहा कि क्या वही सुमति नैमित्तिक ? जिसके आदेश से नरवाहन ने मुझे देवी दी थी ? पासके लोगों ने कहा कि राजन् ! वही सुमति हैं, तब राजा ने कहा कि जल्दी ले आओ क्यों कि उससे देवी का वृत्तांत पूछूंगा, द्वारपाल जब सुमति को अंदर ले आए तब राजा ने सत्कारपूर्वक
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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