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________________ (१३२) इतने में हाथिनी पर चढ़े देवीसहित राजा सेठ के घर आए, बंदीजन जयशब्द बोलने लगे, मांगलिक उपचार के बाद राजा देवी सहित हथिनी से उतरकर मुक्ताफल विरचित सिंहासन पर बैठे, श्रेष्ठ रमणियों ने आरती उतारी, उसके बाद अपने परिजनों के साथ उत्तम भोजन करने के बाद राजा जब स्वस्थ हुए तब विनय से नम्र होते हुए धनदेव ने कहा, महाराज ! देवी की प्रिय बहन कहती है कि पिता के घर पर होती तो पहले वणिक स्त्रियाँ प्रवेश करतीं, किंतु किसी कारण से मेरे लिए वैसा नहीं हुआ। इस लिए देवी-दर्शन से मैं इसी को पितृगृह मानती हूँ, अतः देवी यदि यहाँ तक आवे तो में अपने को अधिक भाग्यशालिनी समझू, धनदेव के इतना कहने पर राजा की आज्ञा से कॅचुकी सहित देवी श्रीकांता के पास आई, मनोरमा ने चंदन आभूषण-वस्त्र आदि से देवी की पूजा करके उससे पुत्र का नामकरण करने की प्रार्थना की, देवी ने कहा कि नामकरण करना तो आपको ही उचित है फिर भी आपके वचन से मुझे अवश्य करना चाहिए, यह कहकर कमल कोमल हाथों बालक को अपनी गोद में रखकर देवी ने कहा कि धनदेव द्वारा श्रीकांता ने इस बालक को जन्म दिया है अतः माता-पिता दोनों के नाम के आधार पर बालक का नाम "श्रीदेव" रखती हूँ, देवी ने बड़ा अच्छा नाम रक्खा यह कहते हुए स्त्रीजनों ने मंगलगीत गाएँ, उसके बाद अत्यंत सुकुमार हाथपैरवाले उस सुंदर बालक को देखकर रानी मन ही मन सोचने लगी कि मेरी सखी धन्य है, जिसने ऐसे सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया, मेरा जीवन सर्वथा बेकार है, यदि पुत्र नहीं तो मेरा राज्य भी व्यर्थ है, इस प्रकार सोचती हुई अपनी सखी से विदा लेकर राजा के साथ अपने घर आ गई । पुत्रजन्म के लिए उत्कण्ठित होकर
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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