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________________ दशम - परिच्छेद प्रसूति कर्म में कुशल स्त्रियों के द्वारा प्रसूति कर्म किए जाने पर, गृहदासियों के द्वारा प्रसन्न मन से तात्कालिक कार्य कर लिए जाने पर परिजन जब हर्ष से बाजा बजाने लगे तब धनधर्म शेठ ने बधाई आरंभ की। नगर की स्त्रियाँ हाथ में अक्षतपात्र लेकर महल में प्रवेश करने लगीं, रमणियाँ मुख मंडन कार्य में लग गई, मुख्य द्वार पर वंदन माला लगाई, लोग परिपूर्ण कलश लेकर द्वार पर खड़े थे, नट-नटियों के संगीत सुननेवाले तथा सुंदर दृश्य देखनेवाले लोगों को जिसमें पान दिया जा रहा था । धनधर्म सेठ ने अहिंसा की घोषणा करवाई, बंदियों को छुड़वाया, दीन तथा अनाथों को अनेक दान दिए, प्रत्येक जिन-मंदिर में सुंदर स्नात्र करवाया, वस्त्रादि से साधुओं का सन्मान किया, स्वजनों को भोजन कराया, नगर के श्रीमंतों को सन्मानित किया, इस प्रकार लोगों के चित्त में आनंद देनेवाला पुत्रजन्म महोत्सव किया। बारहवें दिन प्राप्त होने पर उपहार लेकर राजा के पास जाकर धनदेव ने विनयपूर्वक राजा से कहा, महाराज ! सेठ के वचन से देवी सहित आप आज हमारे घर पर भोजन करें, हँसते हुए राजा ने कहा, क्या यह सेठ का घर नहीं है ? सेठजी तो पिता के समान हैं, समस्त राज्य की चिंता रखनेवाले हैं, अतः सेठजी जो कहते हैं वही मुझे करना चाहिए, राजा के इस प्रकार कहने पर " बड़ी कृपा” यह कहकर अपने घर आकर समयोचित सभी कार्य करवाएँ,
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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