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________________ (१२८) की दुर्गन्ध फैल रही थी । कहीं वीरों के मांस नोंच-नोंचकर कुत्ते खा रहे थे। कहीं कुत्तों के भय से दूर भागकर सियार फें-फें कर रहे थे । कहीं सियारों के फेंकार सुनकर गिद्ध इधर से उधर उड़ रहे थे, कहीं भीलों के बाल-बच्चों की हड्डियाँ दिख रही थीं, कहीं अग्नि में जले अनेक वीरों के शरीर पड़े थे । इस स्थिति को देखकर धनदेव बड़ा दुःखी हुआ और उसने कहा, हाय ! इस गुफा को किसने जलाया ? इतने में करंकों के बीच से किसी ने कहा, धनदेव ! यहाँ आइए । मैं देव शर्मा हूँ, मेरे हाथ-पैर दोनों कट गए, मुझे बड़ी प्यास लगी है। थोड़ा पानी मुझे पिलाइए। उसकी बात सुनते ही धनदेव ने अपने आदमी को पानी लाने के लिए भेज दिया और उससे पूछा कि देवशर्मन् ! गुफा को जलाया ? सुप्रतिष्ठ कहाँ है ? धनदेव की बात सुनकर देवशर्मा ने कहा कि आज से तीन दिन पूर्व सिद्धपुर से एक आदमी आया था। उसने एकांत में सुप्रतिष्ठ से कहा कि मुझे आपके पिता के मंत्री सुमति ने आपके पास भेजा है । उन्होंने मुझसे कहा कि जाकर कुमार से कहो कि उनके पिताजी अत्यंत संभोग प्रसंग क्षयरोग होने से शीघ्र मरनेवाले हैं, सुरथ प्रजावर्ग को बहुत पीड़ा देता है, इसलिए सामंत महंत उससे विरक्त हैं, सब आपको चाहते हैं, आपको मारने के लिए कनकवती ने एक सेना की टुकड़ी भेजी है । अतः आप अपनी रक्षा करेंगे, वह आदमी इस प्रकार बात कर ही रहा था इतने में सेना पहुँच गई। सेना चतुरंगिणी थी अतः उसने गुफा को घेर लिया। भीलों के साथ सुप्रतिष्ठ युद्ध करने के लिए निकल पड़े । भयंकर युद्ध हुआ। बहुत भील लोग मारे गए। हमारा पराजय हो गया । सारभूत वस्तुओं को लेकर, गुफा को जलाकर सेना चली गई । मैं भी इस स्थिति में आ गया। सुप्रतिष्ठ कहाँ
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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