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________________ (१२७) दूसरे, नैमित्तिक ने पहले बतलाया था कि साँप काटने पर जो इसे उज्जीवित करेगा वही इसका भर्ता होगा । कितु लगता है आज नैमित्तिक का वचन झूठ हो जाएगा । धनदेव ? अब हम लोगों को इसकी जीने की आशा टूट गई है, बहन बड़ी प्यारी है अतः हम लोग अत्यंत व्याकुल हैं, उसके वचन सुनकर मन में हर्षित होकर धनदेव ने कहा कि आप लोग चिंता छोड़े दें, नैमित्तिक का वचन सर्वथा सत्य ही होगा। पहले आपकी बहन को दिखलाइए, श्रीदत्त धनदेव को वहाँ ले गया । धनदेव ने अपने आदमी से कहा कि सुप्रतिष्ठ से दी गई मणि लेकर आओ। वह जल्दी से जाकर मणि लेकर आ गया। निर्मल जल से मणि को सींचकर उसके पानी को श्रीकांता के ऊपर छिड़कते ही श्रीकांता मानो सोकर न जगी हो, इस प्रकार उठकर बैठ गई ? । उसको देखकर श्रीदत्त सागर श्रेष्ठी आदि ने हर्षित होकर कहा कि धनदेव ! यह कन्या आपको दी गई । बाद में शुभलग्न में दोनों का विवाह हआ । श्रीकांता के साथ धनदेव कितने महीने तक वहाँ विषय-सुख भोगता रहा । तब तक धनदेव के लोगों ने बहुत लाभ से उसके सारे भांड बेच दिए। धनदेव ने श्वशुर आदि से बिदा मांगीं । श्रेष्ठी ने पर्याप्त धन तथा दासी-दासादि देकर श्रीकांता को बिदा किया। धनदेव पहले के ही मार्ग से कुशाग्रपुर नगर से चला । क्रमशः सिंहगुफा के समीप पहुँचने पर कहा कि यहाँ से सिंहगुफा नज़दीक है। सुप्रतिष्ठ ने उस समय कहा था कि मुझे संतोष देने के लिए इसी मार्ग से आना। यह सोचकर कुछ परिजन के साथ धनदेव सिंहगुफा को चला। वहाँ पहुँचने पर देखा कि गुफा का कहीं पता भी नहीं है। कहीं अग्नि की ज्वाला में जले गाय-भैंस के करंक पड़े थे, कहीं जले हुए घोड़ों
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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