SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२४) दिया, इस से उसकी विद्या नष्ट हो गई। अब वह आपको पराभव देने में असमर्थ है। दूसरी बात यह है कि उस समय मेरे भावी भव को बतलाते हुए केवली ने कहा था कि पूर्व वैरी के द्वारा अपहरण होने पर विद्याधरेंद्र के घर पर बढ़ेंगे, मैं मानता हूँ वे विद्याधरेंद्र आप ही होंगे, अतः मैं आपको वैताढय की दक्षिण श्रेणी में सर्व विद्याधर राजाओं का स्वामी बनाता हूँ, मेरे प्रभाव से आपको सर्व विद्याधर विद्याएँ पठित सिद्ध होगी, आप वचन मात्र से दूसरे की विद्याओं तथा औषधियों को विफल बनाएँगे, बड़े से बड़े अभिमानी विद्याधर विनयपूर्वक आपके आज्ञाकारी बनेंगे, अतः अभी वैताढय के सिद्धकूट शिखर पर जाकर शाश्वत जिन-प्रतिमाओं का अष्टाहिनक महोत्सव करके धरणेंद्र की अभ्यर्थना करके आपको सब विद्याएँ देकर अपने स्थान को जाऊँगा । चित्रवेग ने उस देव को प्रणाम करके कहा कि सुरवर ? यह आपकी बड़ी कृपा होगी। उसके बाद बहुमानपूर्वक मेरे साथ बातचीत करके धनदेव ? बड़ी प्रसन्नता से मुझे यह मणि देकर उस देव के साथ कनकमाला सहित वह विद्याधर आकाश में उड़ गया । और मैं भी वहाँ से चलकर अपने स्थान पहुँचा । इसलिए धनदेव ? यह मणि इस प्रकार से मुझे प्राप्त हुई थी, ठीक यह दिव्यमणि है । यह सभी दोषों को दूर करनेवाली है, विशेषकर विषों को दूर करता हैं । अतः धनदेव ? मेरे अनुरोध से आप इस मणि को स्वीकारें, उनकी बात सुनकर बोलने में अत्यंत कुशल धनदेव ने कहा कि आपका दर्शन आपका प्रेमपूर्वक संभाषण ही मेरे लिए लाखों मणि से बढ़कर है, इस पर फिर
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy