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________________ (११६) लेकर आज तक असहय वियोगजनित दु:ख का अनुभव करना पड़ रहा हैं, चित्रवेग ? अधिक क्या कहूँ ? श्रामण्य लेकर भी जो आपने राग नहीं छोड़ा, उसी से यह विपत्ति आपके ऊपर आई है। देवभव में आपका मित्र जो चंद्रार्जुन देव था वह भी च्यूत होकर चित्रगति रूप में उत्पन्न हुआ। वसुमती आर्या जो चंद्रप्रभादेवी थी। वही च्युत होकर प्रियुगुमंजरी रूप में उत्पन्न हुई। आपके पूर्वभव मित्र चित्रगति ने ही उपाय से आपको कनकमाला प्राप्त कराई थी। अभी कर्मवश से आपको कनकमाला के साथ वियोग हो गया है । चित्रवेग ? अधिक कहने से क्या लाभ ? आपने जो पूछा था, उसका उत्तर मैंने दे दिया। अन्य भव में कनकरथ नाम का साधू जो आपका अत्यंत प्रिय था । बाद में जो देवलोक में विद्युत्प्रभ नाम का देव हुआ। वही मैं हूँ, मैं आपका अत्यंत प्रिय मित्र आज भी उसी देवलोक में हूँ, इसीलिए अभी मैंने आपके साथ ऐसा व्यवहार किया है। चिरपरिचितवर्णन नाम ॥ अष्टम परिच्छेद समाप्त ० ० ०
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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