SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११५) मुनि धनवाहन तथा कनकरथ में परस्पर अत्यंत अनुराग था। गुरु की आज्ञा से दोनों पंच महाव्रत पालन में लीन थे। उसके बाद अपनी आयु थोड़ी जानकर सूरि ने संलेखना के द्वारा अनशनविधि से शरीर छोड़कर दूसरे देवलोक में चंद्रार्जुन विमान में विमान-स्वामी शशिप्रभ देव बनें । धनवाहन मुनि भी राग छोड़े बिना श्रामण्य पालन करके विधिपूर्वक कालधर्म पाकर उसी दूसरे देवलोक में शशिप्रभ देव के विमान-स्वामी बनें । उनका नाम विद्युत्प्रभ देव हुआ । अनंगवति साध्वी भी उनकी देवी चंद्ररेखा बनी । पूर्व वैर को स्मरण करके सुबंधुजीव अग्निकुमार देव ने अनेक उपसर्ग करके सुलोचना आर्या के साथ-साथ कनकरथ साधु को बड़ी निर्दयता से मार डाला । कालधर्म पाकर दोनों दूसरे देवलोक में उत्पन्न हुए । कनकरथ चंद्रार्जुन विमान में विद्युत्प्रभ. सामानिक देव बने और सुलोचना उनकी देवी स्वयंप्रभा हुई। आर्या वसुमती भी काल धर्म पाकर पूर्ववल्लभ चंद्रार्जुन नामक देव की चंद्रप्रभा देवी हुई । इस प्रकार एक ही विमान में दिव्य सुख का अनुभव करते हुए आठ पल्योपम बीत गए। विद्युत्प्रभ देवच्युत होकर इसी वैताढय की दक्षिण श्रेणी में रत्नसंचय नगर में बकुलावती भार्या से पवनगति विद्याधर का पुत्र होकर उत्पन्न हुआ। वही धनवाहनजीव विद्युत्प्रभ देव आप चित्रवेग हैं, देवी चंद्ररेखा भी स्वर्ग से रुत होकर वैताठ्य पर्वत पर कुंजरावर्त नगर में अमितगति विद्याधर की भार्या चित्रमाला की कुक्षि से कनकमाला रूप में उत्पन्न हुई। चित्रवेग ? पूर्व जन्म में श्रमणावस्था में भी आपने अपना राग नहीं तोड़ा इसीलिए आपको अभी रूप, बल, कांति, ऋद्धि आदि सब कुछ अल्प मिले । देवभव में भी आपकी आयु कम थी। इस मनुष्य भव में भी परस्पर दर्शन से
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy