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________________ शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला मौर्य युग में वर्णित क्षेत्र से कोई कलाकृति प्राप्त नहीं हुई है, परन्तु धार्मिक सहिष्णुता अवश्य थी। मौर्यवंश के पश्चात् शुंगवंश के शासकों का मगध की सत्ता पर आधिपत्य स्थापित हुआ। __ शुंगकालीन तीर्थंकर प्रतिमा सर्वप्रथम वर्णित क्षेत्र की राजधानी मथुरा से प्राप्त शिलापट पर अंकित है जो नृत्यपट है। इसमें नीलांजना नामक अप्सरा नृत्य कर रही है। यह नृत्य पट्ट ऋषभ के वैराग्य के लिए प्रसिद्ध है। ___ यह दो भागों में प्राप्त हुआ है। मण्डप के भीतर एक नर्तकी नृत्य कर रही है और पाँच पुरुष वाद्य बजा रहे हैं। इसमें चार स्तम्भ निर्मित हैं तथा इन खम्भों पर पूरा मण्डप टिका हुआ है तथा मण्डप के बाहर से लोग नृत्य का आनन्द उठा रहे हैं। वाद्य वादकों के मस्तक पर पगड़ी है। सबसे किनारे पर एक पुरुष अपना मुँह दाहिनी ओर किये बैठे हैं। लम्बे बालों वाला एक व्यक्ति नृत्य देखने में लीन है। प्रथम पट्ट पर इतना ही अंकित है। _दूसरे पट्ट पर जो इसका दूसरा भाग है उस पर एक दिगम्बर पुरुष के हाथ में कमण्डल है तथा वह बायीं ओर उन्मुख है। दो शिलाओं पर ध्यानस्थ मुनि अंकित है। ऊपर की ओर एक पुरुष को हाथ जोड़े हुए दिखाया गया है। शिला पर अंकित मुनि की लटे सिर के नीचे तक लटक रही है। आकृति की बनावट एवं जटाओं के अंकन के आधार पर यह ऋषभनाथ की प्रतिमा है तथा लक्षण के आधार पर शुंगकाल की है। लखनऊ संग्रहालय में ई. पू. प्रथम शती का एक अभिलिखित फलक लाल चित्तीदार पत्थर पर निर्मित है। सींगयुक्त अजमुखी मानव शरीर वाले नैगमेष आसन पर दायीं ओर मुँह घुमाए ललितासन में बैठे हैं। आसन के पायें नक्काशीदार और पीठिकायुक्त है। एक नग्न बालक नैगमेष के पास तथा दो स्त्रियाँ भी आभूषण एवं वस्त्र से सुसज्जित
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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