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________________ 72 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास उदाहरणस्वरूप मथुरा स्थित कंकाली टीले से प्राप्त प्रतिमाओं एवं बिहार में बक्सर के निकट चौसा से प्राप्त की गई काँस्य प्रतिमाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है। ___ कुषाण युग में मथुरा कला शैली के अन्तर्गत मथुरा मूर्ति निर्माण कला का एक बड़ा ही प्रसिद्ध केन्द्र हो गया था। मथुरा कला शैली की निर्मित प्रतिमाओं को श्रावस्ती, कौशाम्बी, साँची, सारनाथ, राजगृह, बोधगया आदि राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्रों में बहुत सम्मानपूर्वक मथुरा से मंगवाया जाता था।' ___ जैन ग्रन्थों में जिन भगवान की मुद्राओं का वर्णन है, जिसमें उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। इक्कीस तीर्थंकर ने कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान करते हुए तथा तीन जिनों ने ऋषभ, नेमिनाथ और महावीर स्वामी ने ध्यानमुद्रा में आसनस्थ निर्वाण प्राप्त किया। लांछन का अंकन मूर्ति के पादपीठ के मध्य में तथा यक्ष-यक्षी को दायें-बायें बनाना चाहिए। दिगम्बर परम्परा के अनुसार तीर्थकरों की माता द्वारा सोलह' स्वप्न देखे गए जबकि श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जैन भगवानों की माताओं ने चौदह' स्वप्न देखे थे। इस प्रकार दोनों सम्प्रदायों में प्रतिमा भेद स्पष्ट परिलक्षित होता है। ___ जैन धर्म की कला का प्रारम्भिक विकास शूरसेन, अहिच्छत्रा और विदिशा के केन्द्रों में प्रमुख रूप से हुआ। इन प्रमुख स्थानों से जितनी भी जैन कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, उनमें तीर्थंकर प्रतिमाएं, देवियों की प्रतिमाएं तथा आयागपट्ट प्रमुख हैं। आयागपट्ट पूजार्थक होता था। शूरसेन जनपद मौर्य युग में मगध साम्राज्य के अधीन था। चन्द्रगुप्त मौर्य का दरबारी राजदूत मेगस्थनीज ने इस जनपद का वर्णन करते हुए यमुना एवं मथुरा नगरी की प्रशंसा की है। उसने यहाँ के निवासियों की धार्मिक परम्परा का भी उल्लेख किया है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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