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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास 45 60. पू. नि., सं. 48 61. पू. नि., सं. 102 62. पू. नि., सं. 59 63. जैन, हीरालाल; भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 234-35 64. बाजपेयी कृष्णदत्त; ब्रज का इतिहास ख-1, पृ. 89, 90 65. चन्द्र, मोती; सार्थवाह, पृ. 15, 16, 24 66. जैन, जे. सी.; लाइफ इन ऐश्येंट इण्डिया; एज डिपिक्टेड इन द जैन कैनन्स, पृ. 114-15 67. वाजपेयी, कृष्णदत्त; पू. नि., सं. 93 68. वाजपेयी, कृष्णदत्त; पू. नि., सं. 93, 94 69. चन्द्र, मोती; पू. नि.; पृ. 18-19 70. मिश्र, जयशंकर; ग्यारहवीं सदी का भारत, पृ. 11 71. मीत्तल प्रभुदयाल; ब्रज की कलाओं का इतिहास, पृ. 67 72. एपिग्राफिया इण्डिया, X, परिशिष्ट, सं. 56, 117, 121 73. पू. नि., सं. 27 पू. नि., सं. 26 पू. नि., सं. 110 76. पू. नि., सं. 18, 28, 31 77. पू. नि., सं. 54 78. पू. नि., सं. 94 79. राजकीय संग्रहालय मथुरा संख्या क्यू. 2 80. मीत्तल, प्रभु दयाल; पू. नि., पृ. 68 81. जायसवाल, काशी प्रसाद; हिस्ट्री ऑव इण्डिया (150-350 ई.), पृ. 1-32
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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