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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास हूणों के आक्रमण के कारण शूरसेन जनपद की संस्कृति प्रभावित हुई। जैन धर्म का उत्तरोत्तर ह्यास होता चला गया। जैन धर्म से सम्बन्धित अधिकांश कलाकृतियां खण्डित हो गईं । हूण विदेशी थे । अतः उनके आक्रमण के कारण देश की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रगति में बांधा उत्पन्न हुई और देश की एकता खण्डित हो गई । 39 गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् भारतवर्ष में केन्द्रीय शक्ति का अभाव हो गया। किसी भी शक्तिशाली सार्वभौमिक शासन - सत्ता की कमी के कारण सब जगह छोटे-बड़े राज्य अस्तित्व में आने लगे। यह सभी छोटे-बड़े राज्य आपस में मिलकर लड़ते रहते थे और देश की शान्ति-व्यवस्था को आघात पहुंचाते रहते थे । " सम्राट हर्षवर्धन के पहले तक कोई ऐसी प्रबल केन्द्रीय सत्ता नहीं थी जो छोटे-छोटे राज्यों को सुसंगठित करती । ई. छठी शती के मध्य से मौखरी, वर्धन, गुर्जर, मैत्रक, कलचुरि आदि कई राजवंशों का उदय हुआ।12 इस जनपद पर मौखरी, वर्धन तथा गहड़वाल वंशों का शासन रहा । गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद मौखरी शासक ईशानवर्मन ने 'महाराजधिराज' की उपाधि धारण की । अन्तिम मौखरी शासक गृह वर्मन के साथ हर्ष वर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह हुआ था । 103 पुष्यभूति नामक राजा ने थानेश्वर और उसके आस-पास एक नये राजवंश की नींव डाली । हषवर्धन इस वंश का प्रतापी शासक था जिसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर अधिक था । हर्षवर्धन के शासन के अन्तर्गत शूरसेन जनपद था और हर्ष के शासनकाल में सभी धर्मों को अपना प्रचार-प्रसार करने के लिए समान अवसर प्राप्त थे । हर्षवर्धन सभी धर्मों का समान आदर करता था । 104 हर्ष के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की और उसने तत्कालीन राजनैतिक, धार्मिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किया है। उसने बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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