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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
गुप्तकालीन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं में ऋषभ", नेमिनाथ और पार्श्वनाथ' की मूर्तियों को उनके लांछन के द्वारा चिन्हित किया गया है। प्रतिमाओं के वक्ष स्थल पर श्रीवत्स लांछन से भी जैन मूर्तियों की पहचान की गई है।
श्रीवत्स के अतिरिक्त जिन प्रतिमाओं की हथेली एवं तलुवों पर धर्म-चक्र" का अंकन किया गया है। ध्यानमुद्रा में प्राप्त तीर्थंकरों में मथुरा से प्राप्त महत्वपूर्ण कृति है। __गुप्तकाल की महावीर स्वामी की प्रतिमाएं दुर्लभ है। लाल चित्तीदार बलुए पत्थर की कायोत्सर्ग प्रतिमा के दो चरण चौकी महावीर स्वामी की शेष है।
गुप्त शासकों के समय में शूरसेन जनपद की उन्नति हुई परन्तु परवर्ती गुप्त शासकों के समय में जैन धर्म से सम्बन्धित कलाकृतियों का अभाव परिलक्षित होने लगता है। फलस्वरूप जैने धर्म एवं शूरसेन जनपद पर विदेशी आक्रमण प्रारम्भ हो गये। विदेशी आक्रमणों के द्वारा सब कुछ नष्ट हो गया और पुनः शूरसेन एवं जैन धर्म की स्थिति सर्वोच्च नहीं रही। ___ गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के समय में उत्तर-पश्चिम की ओर से हूणों
का आक्रमण प्रारम्भ हो गया। स्कन्दगुप्त ने हूण आक्रमण को दबा दिया। परन्तु परवर्ती गुप्त सम्राट न तो अधिक शक्तिशाली थे और न ही दूरदर्शी, फलस्वरूप हूणों ने दक्षिण-पूर्व से होकर तक्षशिला आदि भव्य नगरों को उजाड़ते हुए मथुरा को लूटते हुए मध्य भारत तक चले गये थे।"
शूरसेन जनपद उस समय अपनी समृद्धि पर था और वहां पर अनेक जैन, बौद्ध एवं भागवत उपासना गृह थे जिन्हें हूणों ने नष्ट कर दिया। शूरसेन जनपद की अनेक सुन्दर मूर्तियां खण्डित हो गई। यहां के धार्मिक स्थलों एवं विद्या-भवनों में जो अमूल्य ग्रन्थ-राशि संग्रहीत थी, उसे जलाकर समाप्त कर दिया गया। हूणों के उस भीषण आक्रमण ने मथुरा के गुप्त कालीन सांस्कृतिक वैभव को घोर आघात पहुंचाया।