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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास से द्वेष नहीं था। उन्होंने कभी भी विपरीत धर्मानुयायियों को कष्ट नहीं दिया। ___ भारतीय इतिहास में गुप्त शासनकाल को स्वर्णयुग कहा गया है। इस जनपद पर गुप्तों के शासन काल में सर्वत्र सांस्कृतिक विकास हुआ। जैन धर्म की प्रतिमाओं की प्राप्ति से यह ज्ञात होता है कि गुप्तों के समय में जैन धर्मानुयायी स्वतन्त्र रूप से अपने धर्म का पालन करते थे। धर्म के साथ-साथ व्यापार का भी विकास हुआ और विदेशों के साथ सम्पर्क स्थापित हुआ। ___ गुप्त सम्राटों ने अपनी वीरता एवं योग्य शासन-क्षमता से उत्तर भारत को एकसूत्र में स्थापित किया। शूरसेन जनपद भी मगध साम्राज्य के अधीन हो गया और उस पर गुप्तों का शासन प्रारम्भ हो गया। गुप्त वंश के समय में देश में व्यवसाय और व्यापार की स्थिति सुदृढ़ हुई तथा आर्थिक उन्नति प्रारम्भ हुई। गुप्त शासनकाल में शरसेन की राजधानी मथरा और अन्य नगर जैसे भड़ौंच, उज्जैनी, विदिशा, वाराणसी, पाटलिपुत्र और कौशाम्बी महत्वपूर्ण व्यापारिक नगर थे जो स्थल मार्ग से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। गुप्त-युग में भारत वर्ष का विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था। देश का व्यापार मिस्र, ग्रीस, रोम, पर्सिया, सीलोन, कम्बोडिया, स्याम, चीन और सुमात्रा आदि देशों के साथ होता था। गुप्त सम्राट वैष्णव धर्मानुयायी थे। परन्तु उनका दृष्टिकोण समभाव था और गुप्त युग में सभी धर्मों को स्वतन्त्रता प्राप्त थी कि वे अपने धर्म की उन्नति के लिए प्रचार-प्रसार कर सकते थे। ___ चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समकालीन महाकवि कालिदास ने अपनी रचना में शूरसेन जनपद का उल्लेख किया है। कालिदास ने यहां के जनपद के निवासियों का आचार-व्यवहार सर्वश्रेष्ठ बताया है। शरसेन जनपद की गणना कालिदास ने अन्य बड़े जनपदों के साथ किया है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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