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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास 37 द्वारा निर्मित कराई गई। ये लोग अधिकांशतः मध्यम वर्ग से सम्बन्धित थे। कुषाण काल में आन्तरिक शान्ति व्यवस्था थी। फलस्वरूप व्यापार को बढ़ावा मिला। व्यापारियों एवं व्यावसायियों ने देश-विदेश से व्यापार करके धन अर्जित किया जिसका उपभोग उन्होंने धार्मिक कार्यों, स्मारकों तथा मूर्तियों के निर्माण में किया। कुषाणों के युग में मथुरा कला शैली का जन्म हुआ मथुरा कला शैली की समकालीन गान्धार कला का भी विकास हुआ। मथुरा कला के अन्तर्गत लाल चित्तीदार बलुआ पत्थरों से कलाकृतियों का निर्माण हुआ। मथुरा कलाओं के अन्तर्गत प्रतिमाओं एवं आयागपट्टों के द्वारा मूर्ति विज्ञान की विशेषताओं का प्रादुर्भाव हुआ। मथुरा कला शैली विशुद्ध भारतीय थी। मथुरा कला शैली की प्रतिमाओं पर अलंकृत प्रभामण्डल, वक्ष पर श्रीवत्स तथा हथेली और तलुवों पर धर्म चक्र का अंकन सर्वप्रथम दृष्टिगत होता है। मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित मूर्तियों की मांग सर्वत्र होती थी। मथुरा कला की मूर्तियों में भाव एवं कथानक दोनों भारतीय हैं। ___ कुषाण काल में शूरसेन जनपद में जैन धर्म सर्वाधिक जीवन्त रहा है। साधु-साध्वियों के साथ-साथ कनिष्क, हुविष्क और वाशिष्क तथा वासुदेव आदि कुषाण राजाओं के नामों का उल्लेख अभिलेखों से ज्ञात होता है। इनके अतिरिक्त सहस्त्र धर्म भक्त श्रावकों, एवं धर्मनिष्ठ महिलाओं के नामों का पता चलता है।' ___ विभिन्न धार्मिक कार्यों, निर्माण कार्यों एवं दान देने वाले स्त्री-पुरुषों की जाति या वर्गों एवं व्यवसायों के नाम उल्लिखित हैं। अनेक व्यवसायों जैसे- लोहिक", रंगरेज', सार्थवाह", सुनार", नर्तक", ग्रामिक और जौहरी"" आदि विभिन्न व्यवसायों में रत स्त्री-पुरुषों के नाम उस काल में जैन धर्म की व्यापकता के सूचक हैं। __इसके अतिरिक्त गन्धी", गन्धी की मां', पत्नी एवं पुत्रवधु द्वारा दान में दिए गए आयागपट्ट का उल्लेख मिलता है। इन साक्ष्यों से स्पष्ट
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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