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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास में मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया और मगध पर शुंग वंश का अधिपत्य स्थापित हो गया। 27 पुष्यमित्र शुंग ने मगध पर अधिकार स्थापित करके शुंग वंश का शासन आरम्भ किया। शुंग वंश के शासकों का प्रयत्न ब्राह्मण धर्म का पुनरूत्थान करना था, जिसके परिणामस्वरूप जैन, बौद्धादि श्रमण धर्मों को हानि भी पहुंची। 19 शुंगों के शासनकाल में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई। शुंग वंश में शूरसेन जनपद पर भी शुंगों का अधिकार हो गया और जनसामान्य शूरसेन के स्थान पर मथुरा का सम्बोधन प्रारम्भ कर दिया था। फलस्वरूप शूरसेन का नाम विलुप्त होने लगा और उसकी राजधानी मथुरा जनसामान्य तथा विशिष्ट दोनों ही वर्गों की बोलचाल में सम्मिलित होने लगी । प्रसिद्ध वैयाकरण पतंजलि पुष्यमित्र के समाकालीन थे, जिन्होंने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर प्रसिद्ध महाभाष्य की रचना की । महाभाष्य में पतंजलि ने मथुरा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यहां के लोग संकाश्य तथा पाटलिपुत्र के निवासियों की अपेक्षा अधिक श्रीसम्पन्न थे 120 भारत के प्रमुख धर्मों में वैदिक, जैन एवं बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। शूरसेन जनपद में शुंगयुग में भी तीनों प्रमुख धर्मों का महत्वपूर्ण अस्तित्व था। जैन धर्म की प्राचीनता मगध की भांति शूरसेन जनपद में पुरावशेषों से ज्ञात होती है I शुंग - युग में बड़े-बड़े व्यापारिक मार्ग शूरसेन से होकर निकलते थे । मथुरा से एक मार्ग बेरंजा होकर श्रावस्ती को जाता था । तक्षशिला से पाटलिपुत्र की ओर तथा दक्षिण में विदिशा और उज्जयिनी की ओर जाने वाला मार्ग मथुरा से होकर जाता था । " वैदिक, जैन तथा बौद्ध धर्म का केन्द्र होने के कारण शुंग युगमें शूरसेन जनपद की ख्याति अत्यधिक फैल गई थी।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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