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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास भारत के सोलह महाजनपदों में मगध जनपद अधिक शक्तिशाली था और साम्राज्यवादी शक्तियों का महत्वपूर्ण केन्द्र भी था तत्कालीन सभी गणराज्य मगध जनपद की अधीनता स्वीकार करते थे। शूरसेन जनपद भी मगध साम्राज्य के अधीन था अतः मौर्य युग में शूरसेन जनपद में बैदिक धर्मों के साथ-साथ जैन धर्म को भी प्रोत्साहन मिलता था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अन्तिम समय में जैन धर्म को पूर्णतः अंगीकार कर लिया था। चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद बिन्दुसार तथा अशोक ने भी जैन धर्म को प्रोत्साहन दिया। अशोक बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का भी आदर करता था। अशोक अहिंसा के सिद्धान्त का पालन स्वयं भी करता था और अपनी प्रजा को भी प्रेरित करता था। अशोक ने निर्ग्रन्थों एवं आजीविको को दान दिया था। इससे स्पष्ट होता है कि मौर्य युग में सभी धर्मों को समान सम्मान प्राप्त था और राज्य की ओर से भी सभी धर्मों को पर्याप्त सहयोग प्राप्त होता था। ___ अशोक महान का उत्तराधिकारी सम्प्रति भी जैन धर्मानुयायी था। उसके शासन काल में जैन धर्म का विकास हुआ।" । ___ शूरसेन जनपद के साथ मगध, अंग, कलिंग, काशी, कोशल, कुरू, सौरिपुर, पंचाल, अहिच्छत्रा, सौराष्ट्र, विदेह, वत्स, नन्दीपुर, मलय, मत्स्य, चेदि, सिन्धु सौवीर, श्रावस्ती आदि स्थलों को आर्य घोषित कर जैन श्रमणों के विहार योग्य बना दिये गए। सम्प्रति ने जैन श्रमणों के लिए दानशालाएं स्थापित करवाई तथा भोजन वस्त्र प्रदान करने का भी व्यवस्था करवाई। सम्प्रति ने आंन्ध्र, द्रविड़, महाराष्ट्र और कोडुक्क के प्रदेशों को जैन साधुओं के निवास एवं विहार के लिए सुरक्षित कर दिया था।" ___मौर्य युग में शूरसेन जनपद में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहा है। मौर्य शासकों ने सभी धर्मों को समान रूप से प्रश्रय दिया। जैन धर्मानुयायी स्वतन्त्रतापूर्वक अपने धर्म का आचरण करते थे। कालान्तर
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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