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________________ विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत 23 48. पृ. नि. पृ. 58 49. जैन, हीरालाल; भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृ. 234 50. भगवती सूत्र, 7, 1, 255; समराइच्चकहा, 3, पृ. 217 51. राव, टी. ए. गोपीनाथ; एलिमेण्ट्स ऑव हिन्दू आइकनोग्राफी, खण्ड-1, भाग-2, पृ. 366 52. राज्य संग्रहालय लखनऊ संख्या जे 66.225, जे 312 : राव टी.ए. गोपीनाथ, पू. नि., पृ. 360, 366, 387 53. मीतल, प्रभुदयाल; पृ.नि., पृ. 94 54. पू.नि., पृ. 94-95 55. महाभाष्य, 5-3-57 “सांकाश्यकेभ्यश्च पाटलिपुत्रकेभ्यश्रव माथुरा अभिरूपतरा इति।" 56. रघुवंश, 6-50 57. फ्यूरर; मथुरा इन्स्क्रिप्शन्स, 1888-1891; कनिंघम ए.; ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1871, 1881, 1882, 1883; एफ.एस. ग्राउस; मथुरा-एडिस्ट्रिक्ट मेमोआर। 58. हर्बर्ट, हर्टल; सम रिज़ल्ट्स ऑव द एक्शकेवेशन्स ऐट सोंख : ए प्रीलिमिनरी रिपोर्ट, जर्मन स्कालर्स आन इण्डिया, भाग-2, नई दिल्ली, 1976 59. एरियन; इण्डिका VIII 60. प्लिनी; नेचुरल हिस्ट्री, VI 19; मेक्रिडिल; ऐश्येंट इण्डिया ऐज डिस्क्राइब्ड बाई टॉलमी, एस. एन. मजूमदार संस्करण, पृ. 98 61. सैमुअल बील; ट्रैवेल्स ऑव फाह्यन; पृ. 42 62. वाटर्स, थामस; ट्रैवेल्स ऑन युवान च्यांग्स, I, पृ. 301
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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