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विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत
शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा से प्राचीन शिलालेख मिले हैं जिनसे न केवल विविध कालों की राजनीतिक अवस्था का पता चलता है बल्कि तत्कालीन धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति पर भी प्रचुर प्रकाश पड़ता है।
शूरसेन जनपद की एक विशेष कला थी जो मथरा कला के नाम से जानी जाती है। अब तक शूरसेन जनपद की चित्तीदार लाल बलुए पत्थर की मूर्तियां, स्तम्भ, शिलापट्ट, सिरदल, चरण चौकी एवं स्तूप मिले हैं। ___ इन अवशेषों से प्राचीन स्थापत्य की विशद् जानकारी मिलती है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राचीन शूरसेन मे किस प्रकार के मन्दिर, विहार, स्तूप, महल, मकान आदि निर्मित होते थे।
शोध छात्रा ने शूरसेन जनपद के ऐतिहासिक स्थलों का व्यक्तिगत विस्तृत सर्वेक्षण किया है। सर्वेक्षण से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री का समावेश इस शोध प्रबन्ध में किया गया है। ___ भारत में प्रारम्भ से ही विदेशी यात्रियों का आगमन होता रहा है जिन्होंने अपने यात्रावृतान्त लिखे हैं। इन वृत्तान्तों से तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाओं का विस्तृत ज्ञान उपलब्ध होता है। इन यात्रियों ने यहां का आंखों देखा विवरण प्रस्तुत किया है।
सर्वाधिक प्राचीन वृत्तान्त यूनानी यात्रियों के मिलते हैं। मौर्यवंश के समय में मेगस्थनीज नामक यूनानी राजदूत भारत आया था। उसने शूरसेन का उल्लेख किया है। इसकी इण्डिका नामक पुस्तक आज उपलब्ध नहीं है लेकिन ई. दूसरी शती के यूनानी लेखक एरियन ने अपनी पुस्तक में 'इण्डिका' के उद्धरणों को प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है- “शौरसेनाई शूरसेन” लोग हेराक्लीज (कृष्ण) को बहुत आदर की दृष्टि से देखते हैं। __शौरसेनाई लोगों के दो बड़े शहर हैं- मेथोरा (मथुरा) और क्लीसोबोरा (केशवपुरा)। उनके राज्य में जोबरेस (जमुना) नाम की एक नदी बहुती है जिसमें नावे चल सकती हैं।