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________________ उपसंहार 169 अध्ययन क्षेत्र से तीर्थंकरों की प्रतिमाएं, देवी प्रतिमाएं, नैगमेष, यक्ष- यक्षी की मूर्तियाँ विद्याधरों की मूर्तियाँ, भक्तगणों की प्रतिमाओं का बहुत कुशलता के साथ अंकन किया गया है । नेमिनाथ के साथ कृष्ण एवं बलराम का अंकन मिलता है । जैन देवी सरस्वती की प्राचीनतम प्रतिमा कंकाली टीले से मिली है जिससे सरस्वती आन्दोलन का प्रमाण मिलता है अनेक आयागपट्टों का सुन्दर अलंकरण भी जैन धर्म में कला का ज्ञान कराती है। जैन वास्तुकला के सन्दर्भ में भी शूरसेन जनपद से दो मन्दिर एवं स्तूप का साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य मिलता है । सुपार्श्वनाथ के प्रति अर्पित देव निर्मित स्तूप का उल्लेख मिलता है । स्तूप स्थापत्य का दिग्दर्शन एक आयागपट्ट पर दृष्टव्य है जिसका सोपान, वेदिका स्तम्भ, मेधी एवं आधा अण्ड भाग सुरक्षित है । यह अभिलिखित है I एक अभिलिखित आयागपट्ट पर स्तूप का सुन्दर अंकन दृष्टिगोचर होता है। दो स्तम्भों के मध्य में स्थित स्तूप पर पहुँचने के लिए सोपान, वेदिका एवं तोरण द्वार स्पष्ट है। इसकी पूजा के लिए विद्याधर हाथ में सुपर्णमाला लिए तत्पर हैं 1 अध्ययन क्षेत्र में जैन संस्कृति व्यापक रूप से दृष्टिगोचर होती है । जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था एवं जाति - पाँति को स्वीकार नहीं किया गया है । विवेच्य क्षेत्र में चारों वर्ण का अस्तित्व था । विवेच्य क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति उत्तम थी। गणिकाओं को भी धर्मदान देने का अधिकार था । लवणशोभिका आदि महिलाओं द्वारा दिया गया आयागपट्ट बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें सास-ससुर, माता-पिता एवं पति का नाम भी उल्लिखित है । फर्ग्यूश नर्तक की पत्नी शिवयशा द्वारा दान में दिया गया एक आयागपट्ट कंकाली टीले से प्राप्त हुआ है। इसमें स्तूप का अंकन प्राप्त
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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