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________________ पुरोवाक् प्राचीन काल से ही भारतीय जन-जीवन में धर्म का प्रमुख स्थान रहा 1 शूरसेन जनपद का उल्लेख षोड्स महाजनपदों में किया गया है। मथुरा शूरसेन जनपद की राजधानी थी। यह जनपद वैदिक, बौद्ध एवं जैन धर्मों का प्रमुख केन्द्र रहा है । धर्म प्रचार-प्रसार के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों के निमित्त उनके अनुयायियों ने कुछ ऐसी स्थायी वस्तुओं का निर्माण करने का निर्णय लिया, जिनसे उनका धर्म युग-युगान्तर तक चिर स्थायी रहे। इसी सन्दर्भ में गुफाओं, स्तूपों, मन्दिरों एवं मूर्तियों का निर्माण किया गया । जैन धर्म की प्रथम प्रामाणिक प्रतिमा मौर्यकाल की मानी जाती है, जो लोहानीपुर से प्राप्त हुई है । इसी क्रम में कंकाली टीला, मथुरा से (150 ई. पू. से 1023 ई.) की जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनकी विशेषताएं इस पुस्तक में उल्लिखित हैं। तीर्थंकर ऋषभदेव की लटकती जटा, पार्श्वनाथ के सात सर्पफण, जिनों के वक्ष पर वत्स और शीर्ष पर उष्णीण निर्मित करने का श्रेय मथुरा कला को ही जाता है । मथुरा कला के अन्तर्गत ही प्रतिमाओं का अंकन ध्यानमुद्रा में प्रारम्भ हुआ इससे पूर्व प्राप्त प्रतिमाओं में जो लोहानीपुर, चौसा की है, उनमें जिन कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं । प्रतिमाओं में लाछनों के साथ-साथ यक्ष-यक्षी युगलों का चित्रण भी सर्वप्रथम शूरसेन जनपद में ही प्रारम्भ हुआ । कंकाली मथुरा से प्राप्त जैन पुरातत्व का वर्णन भी इस पुस्तक में किया गया है श्री कृष्ण के जन्म स्थान के कारण मथुरा को भारत की हृदय-स्थली स्वीकार किया गया है। शूरसेन जनपद में जैन वास्तुकला के अवशेष अत्यल्प 1 टीला,
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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