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________________ 160 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास आवश्यकचूर्णिकार ने कहा कि सूत्र के अर्थ को स्पष्ट करने में भाषा और विभाषा का वही स्थान है, जो चित्रकला में चित्रकार को प्राप्त है। जैन साहित्यिक उल्लेखों से प्रमाणित है कि जैन परम्परा में चित्रकला का प्रचार अति प्राचीन काल में हो चुका था और यह कला सुविकसित एवं सुव्यवस्थित हो चुकी थी। चित्रकला की अनेक जैन साहित्यिक रचनाओं में भी चित्रकला सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त होते हैं। 11वीं-12वीं शताब्दी में रचित जैन कथा कृतियों में चित्रकला के सम्बन्ध में बड़ी ही उपयोगी चर्चाएं दृष्टिगोचर होती है। ___ मागधी-प्राकृत की कथा कृति 'सूर सुन्दरी कहा' में भ्रमर और कुमुदनी का चित्र चित्रित है। जैन ग्रन्थ आचांराग सूत्र में जैन साधुओं और ब्रह्मचारियों को चित्रशालाओं में जाने और ठहरने से वर्जित किया गया है। जैनाचार्य हेमचन्द्र (1082-1172 ई.) के महाकाव्य 'त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित' में तत्कालीन राजदरबारों में अनेक चित्रकारों की सभा होने का वर्णन है, जो भित्तिचित्रों से सुसज्जित थीं। प्रभावकचरित्र के ‘वप्पभट्टसूरिचरित्र' में नवीं शताब्दी में भगवान महावीर के चित्रपदों के बनाने का उल्लेख है। वप्पभटटसरि को चित्रकार ने महावीर की मूर्ति वाले चार चित्रपट्ट तैयार करके दिये। ___ वप्पभट्टसूरि जी ने उनकी प्रतिष्ठा करके एक कन्नौज के जैन मन्दिर में, एक मथुरा में, एक अणहिल्लापाटण में, एक सत्तारकपुर में भेज दिए। जिनमें पाटण वाला पट्ट विदेशी आक्रान्ताओं ने पाटण को विध्वंस करते समय नष्ट कर दिया। नवीं शताब्दी में महावीर के उक्त चार चित्रपट बनाये जाने का उल्लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है। परन्तु दुःख है कि उनमें से एक भी उपलब्ध नहीं है। हरिभद्र सूरी ने आवश्यक वृत्ति में समवसरण चित्र बनाये जाने का उल्लेख किया है।"
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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