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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान 145 दो हजार वर्ष पूर्व शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा का ‘सरस्वती आन्दोलन' विश्व इतिहास की एक ऐसी अद्भुत घटना है जिसका अन्यत्र उदाहरण दुर्लभ है। __ श्रुतज्ञान की धारा बनाए रखने, उसके संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के प्रति आचार्यों, विद्वानों एवं विशाल जन-समुदाय की जागरूकता, प्रगतिशीलता समर्पण एवं आस्था का प्रतीक यह आन्दोलन था। इस आन्दोलन ने इस श्रुत सम्पदा की रक्षा के लिए एक क्रान्ति की और इसका जीवन्त उदाहरण जिनवाणी, श्रुतदेवी की कुषाण कालीन अभिलिखित सरस्वती देवी की कंकाली टीले से प्राप्त प्रतिमा है। ज्ञान की देवी सरस्वती की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करके आन्दोलन की अधिष्ठात्री बनाया गया। शिलालेख एवं तिथि सहित प्राचीन भारत की सर्वाधिक प्राचीन सरस्वती प्रतिमा का निर्माण एवं प्रतिष्ठा करने का श्रेय शूरसेन जनपद को ही प्राप्त है। इसके पूर्व जैन आगम न तो संकलित थे और न ही सुरक्षित थे। श्रुतावतरण के समय भी गौतम आदि गणधर देवों द्वारा श्रुत गुम्फन के बावजूद इन्हें लिपिबद्ध करने की अपेक्षा पूर्व परम्परा के अनुसार इस श्रुत सम्पदा को 'गुरू-शिष्य' परम्परा विधि द्वारा कण्ठस्थ विधि से इसे धारण करते हुए अगले छह सौ वर्षों तक संरक्षित रखने का पूरा प्रयास किया गया।17 शूरसेन जनपद का यह महत्वपूर्ण योगदान है कि सरस्वती प्रतिमा की स्थापना सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में हुई तथा जैन आगमों को संकलित करने के लिए एक महत्वपूर्ण सरस्वती आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। __ सरस्वती आन्दोलन के फलस्वरूप आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, भगवती, ज्ञातधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विशाकश्रुत और दृष्टिवाद इस द्वादशांक श्रुत का संरक्षण महावीर स्वामी के निर्वाण के 162 वर्ष बाद ही सम्भव हुआ।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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